SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८४ सूत्रकृताङ्गसूत्रे दृशभाषकस्तु अतीतवर्तमानानागतकालज्ञानवानेव भवति, स एव चाखिलबन्धनानां परिज्ञाता त्रोटयिता च भवतीत्यत्र प्रतिपाद्यते, अनेन सम्बन्धेनायातस्यास्य पञ्चदशाध्ययनस्येदमादिसूत्रम्-'जमतीय' इत्यादि। मूलम्-जमतीयं पंडुप्पन्नं, आगमिस्सं च णायओ। संव्वं मैन्नई तं ताई, दंसणावरणतए ॥१॥ छाया-यदतीतं प्रत्युत्पन्नम् , आगमिष्यच्च नायकः । सर्वं मन्यते तत् त्रायी दर्शनावरणान्तकः ॥१॥ प्ररूपणा तो वहीं कर सकता है, जिसे भूत, वर्तमान और भविष्यत् काल का ज्ञान हो, वही समस्त बन्धनों को जानने वाला और तोड़ने वाला होता है। यह तथ्य यहां प्रकट किया जाता है । इस सम्बन्ध से प्राप्त पन्द्रहवें अध्ययन का यह प्रथम सूत्र है-'जमतीयं' इत्यादि । शब्दार्थ-जो महापुरुष 'दसणावरणतए-दर्शनावरणान्तकः' दर्शनावरणीय कर्मका अंतकरनेवाला अर्थात् चारों प्रकारके धातिया कर्म को खपानेवाला अतएव 'ताई-त्रायी प्राणियों की रक्षाकरनेवाला तथा 'णायओ-ज्ञायक:' उत्पादादिधर्म पदार्थ को जाननेवाला अथवा 'णायो-नायकः' यथावस्थित वस्तु का प्रतिपादन करनेवाले होने से नायक-नेता ऐसा वह 'जमतीयं-यदतीतम्' जो पदार्थ भूतकाल में हो चुके हैं तथा जो ‘पडप्पनं-प्रत्युत्पन्नम् वर्तमान काल में हो रहा है और એજ કરી શકે છે કે-જેને ભૂત, વર્તમાન અને ભવિષ્ય કાળનું જ્ઞાન હોય, એજ સઘળા બને ને જાણવાવાળા અને તોડવાવાળા હોય છે. આ તથ્ય અહિયાં પ્રગટ કરવામાં આવે છે. આ સંબંધથી પ્રાપ્ત થયેલ પંદરમા અધ્યયન D मा पदु सूत्र छ.-'जमतीय' त्याह. ___ - महा५३५ ‘दसणावरणतए-दर्शनावरणान्तकः' ४ न.१२०ीय કર્મને અંત કરવાવાળા અર્થાત્ ચારે પ્રકારના ઘાતિયાકર્મને ખપાવવાવાળા मेटमा भाटे 'ताई-त्रायो' प्रालियोनी २क्षा १२वा तथा 'णायओ-ज्ञायकः' 6.५६ मा ५४ान तापवाणा अथवा 'णायओ नायकः' यथाय. स्थित स्तुनु प्रतिपान ४२वावमा पाथी नाय-नेता वो ते 'जमतीययदतीतम्' यहाथ सूतभा 25 यूस छ. तथा ५'पडप्पन्नंप्रत्युत्पन्नम्' वर्तमानमा विद्यमान छ. अने रे ५५' 'आगमिस्सं-आग. શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૩
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy