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________________ समपार्थबोधिनी टीका प्र. थु. अ. १३ याथातथ्य स्वरूपनिरूपणम् ३७५ अन्वयार्थः- (सयं) स्त्रयम्-आत्मनैव परोपदेशं विनैव (समेच्चा ) समेत्य मोक्षमार्ग सम्यग्ज्ञात्वा (अदुवा वि) अथवाऽपि ( सोच्चा) श्रुत्वा - गुरुपरम्परया निशम्य (1) प्रजानाम् ( हिययं) हितकं हितकारकम् (धम्मं ) धर्मम् श्रुतचारित्ररूपम् (भासेज्न ) भाषेत (जे) ये खलु (गरहिया) गर्हिताः - निन्दिताः (सफियाणपओगा) सनिदानप्रयोगाः - सरकारसंमानादिकथनसहिता व्यापारा भवन्ति (ताणि) तान् सनिदानप्रयोगान् (सुधीरधम्मा) सुधीरधर्माण:-महर्षयः : (ण सेवंवि) न सेवन्ते ||१९|| टीका - पुनरप्याह- 'सर्य' स्वयम् - आत्मना परोपदेशमन्तरेणैव 'समेच्चा' प्रजाओं के 'हिपयं हितकम्' हितकारक 'धम्मं धर्मम् श्रुतचारित्र रूप धर्म का ' भासेज्जा - भाषेत' कथन करे जे ये' जो गरहिया-गर्हिताः ' निंदित कार्य 'सणियाणपभोगा-सनिनप्रयोगाः फलकी प्राप्तिके लिये किया जाता है 'ताणि-तान' ऐसे सनिदान कार्य का 'सुधीर धम्मा-सुधीरधर्माण:' धीर पुरुष 'ण सेवंति न सेवन्ते' सेवन नहीं करता है ॥ १९ ॥ अन्वयार्थ - स्वयं ही आत्मा के द्वारा परोपदेश के बिना ही मोक्ष मार्ग को अच्छी तरह जान कर अथवा गुरु परम्परा द्वारा समझ कर प्रजाओं का हितकारक श्रुत चारित्र रूप धर्म का उपदेश करे । और जो साधुजनों के लिए निन्दित सत्कार संमानादि कथन व्यापार हैं। उनको सुधीर धर्मा (मेधावी साधु) महर्षिगण सेवन नहीं करते हैं । १९ । टीकार्थ - और भी कहते हैं- मनुष्यजन्म, आर्य क्षेत्र आदि, यह हितकम्' द्विता२४ 'धम्मं धर्मम्' श्रुतास्त्रि ३५ धर्म'ने 'भासेज्जा - भाषेत ' उथन ४२ 'जे-ये' - 'गरहिया - गर्हिताः' निहित अर्थ 'सणियाणप्पओगा - सनिदानप्रयोगाः ' इसनी प्रप्ति भाटे उरवामां आवे छे 'ताणि तान्' सेवा सनि हान अर्थ' 'सुधीरधम्मा-सुधीरधर्माण:' धीर ५३ष 'ण सेवति न सेवन्ते' સેવન કરતા નથી ૫૧૯મા અન્વયા -પાતેજ આત્મા દ્વારા પરીપદેશ વિનાજ મેાક્ષ માર્ગને સારી રીતે જાણીને અથવા ગુરૂ પરપરા દ્વારા સમજીને પ્રજાના હિતકારક શ્રુતચારિત્ર રૂપ ધર્માંના ઉપદેશ કરે અને જે સાધુજના માટે નિંદિત સત્કાર સમ્માનાદિ કથન રૂપ વ્યાપાર છે, તેનું સુધીર ધર્મો (મેધાવી સાધુ) સેવન ४२ता नथी. ॥१८॥ ટીકાથ—વિશેષ કહે છે—મનુષ્ય જન્મ આય ક્ષેત્ર વિગેરે રૂપ श्री सूत्र तांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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