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________________ % E समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् २९३ अन्वयार्थः- (बाला) बालाः (कर्मणा कर्मक्षयो भवति) इति मन्यमाना अज्ञानिनः (कम्मुगा) कर्मणा-सावद्यारम्भरूपेण आस्रवद्वारेण (कम्म) कर्म-पापं कर्म (न खति) न क्षपयन्ति-क्षपयितुं न शक्नुवन्ति, अपितु (धीरा) धीराः-महासत्ववन्तः पुरुषाः (अकम्मुणा) अकर्मणा-आस्रवनिरोधेन (कम्म) कर्म पाप कर्म (खति) क्षपयन्ति, अतः (मेधाविणो) मेधाविन:-विशिष्टबुद्धिशालिनः, अत एव (लोभमयावतीता) लोभमयादतीता:-परिग्रहातीताः-द्रव्यभावपरिग्रहवर्जिताः अतएव (संतोसिणो) सन्तोषिणः-सन्तोषवन्तः संयताः (पाव) पापम्-सावधा नुष्ठानम् (नो पकरें ति) नो प्रकुर्वन्ति ॥१५॥ ___टीका-किश्चान्यत् 'बाला' बाला इव बाला:-अविवेकिन:-सदसद्विवेक विकला:-मिथ्यात्वदोषैरभिभूताः 'कम्मुणा' कर्मणा-सावद्यकर्मानुष्ठानेन पाणातिपातादिरूपेण 'कम्म' कर्म 'न खति' न क्षपयन्ति-कर्मणः क्षयार्थमुत्सुकाः । उद्युक्ता अपि कर्म क्षायितुन समर्था भवन्ति, किन्तु 'धीरा' धीराः-परीषहोप मयादतीता' परिग्रह से दूर रहते हैं अतएव संतोसिणो-सतोषिणा' संतुष्ट रहते हुवे 'पावं-पापम्' सावध अनुष्ठान 'नो पकरेंति नो प्रकुर्वन्ति' नहीं करते हैं ॥१५॥ ___अन्वयार्थ अज्ञानी जीव (सावद्य) कर्म से कर्म का क्षय नहीं कर सकते, धीर पुरुष अकर्म से (भाव निरोध से) कर्म का क्षय करते हैं अत: मेधावी पुरुष परिग्रह से (अथवा लोभ और मद से) रहित होकर, सन्तोष धारण करके पाप नहीं करते हैं ॥१५॥ टीकार्थ-सत् असत् के विवेक से शून्य और मिथ्यात्व आदि दोषों से परास्त अज्ञानी जीव प्राणातिपात रूप सावध कर्म के अनु. ष्ठोन से कर्मों का क्षय करने के लिए उत्सुक होते हुए भी क्षय करने में समर्थ नहीं हो सकते हैं । किन्तु जो पुरुष धीर हैं अर्थात् परीषहों 'संतोषिणो-संतोषिणः' संतुष्ट मनीने पावं पापम्' सावध अनुहान 'नो पकरे ति-नो प्रकुर्वन्ति' ४२ता नथी ॥१५।। અન્વયાર્થ—અજ્ઞાની જીવ (સાવધ) કર્મથી કમનો ક્ષય કરાવી શક્તા નથી. ધીર પુરૂષ અકર્મથી (આસોને રોકવાથી) કર્મને ક્ષય કરે છે તેથી મેધાવી પુરષ પરિગ્રહથી (અથવા લેભ અને મદથી રહિત બનીને સંતોષ ધારણ કરીને પાપ કર્મ કરતા નથી. ૧૫ ટીકાર્થ–સત્ અસતના વિવેક રહિત અને મિથ્યાવ વિગેરે દેથી પરાજય પામેલા અજ્ઞાની છ પ્રાણાતિપાત રૂપ સાવધ કર્મના અનુષ્ઠાનથી કમેને ક્ષય કરવા માટે ઉત્સુક થતા હોવા છતાં પણ ક્ષય કરવામાં સમર્થ થતા નથી. પરંતુ જે પુરૂષ ઘર છે, અર્થાત્ પરીષહ અને ઉપસર્ગોને સહન श्री सूत्रतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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