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________________ २४४ सूत्रकृतागसूत्रे 'वैनयिकमतं विनय, वेतो वाकायदानतः कार्यः । सुर-नृपति-यति-ज्ञानि,-स्थविरा-ऽधम-मातृ-पितृषु सदा ॥ १॥' सुरनृपत्यादिषु अष्टसु मनसा वावा कायेन दानेन चेति चातुर्विध्येन विनयः कार्यः । एतेऽष्टी मनसेत्यादि चतुर्मिगुणिता द्वात्रिंशद् भवन्तीति३ । 'अन्नाणं' अज्ञानम् 'आहेसु' आहु:-कथयन्ति । 'चउत्थं' चतुर्थ मतम् ४, अज्ञानादेव सुखं भवति' एवं ये वदन्ति तेऽज्ञानवादिन इति । अज्ञानवादिन:ससपष्टिभेदभिन्नाः जीवाऽजीवादीन् नवपदार्थान् क्रमेण व्यवस्थाप्य तत्र सप्त भङ्गकाः संस्थाप्याः सत् असत्, सदसत्, अवक्तव्यम्, सदवक्तव्यम्, असदवक्तव्यम्, तीसरे वादी वैनयिक है इनके बत्तीस प्रकार हैं। कहा है-'वनयिक मतं विनयः' इत्यादि । 'वैनयिकों का मन्तव्य है कि मन, वचन, काय और दान इन चार प्रकारों से देवता, राजा, यति, ज्ञानी, स्थविर (वृद्ध) अधम, माता और पिता इन आठ का सदैव विनय करना चाहिए।' इस प्रकार आठ के साथ चार का गुणाकार करने पर बत्तीस भेद होते हैं। चौथे वादी अज्ञानवादी हैं। इनके मतानुसार अज्ञान से ही सुख एवं इष्ट पदार्थों की सिद्धि होती है । अज्ञानवादी सड़सठ (६७) प्रकार के हैं। वे इस प्रकार जीव, अजीव आदि नौ पदार्थों को क्रम से लिख लिया जाएं और प्रत्येक के नीचे आगे कहे जाने वाले सात भंग लिखे जाएँ। वे सात भंग यों हैं-सत्, असत्, सदसत् तमना मत्रीस लेहो छ, छ -'वैनयिकमतं विनयः' त्या वैयितुं मन्तव्य छ -मन, पयन, अय भने हान ॥ या२ ५४. शेयी वता१, २२, यति3, ज्ञानी४ (स्थवि२) वृद्धभनय, अधम, माता, અને પિતાટે આ આઠેને હંમેશાં વિનય કરવો જોઈએ. આ રીત આઠની સાથે ચારને ગુણવાથી બત્રીસ ભેદે થઈ જાય છે. ચોથા અજ્ઞાનવાદી છે. તેઓના મત પ્રમાણે અજ્ઞાનથી જ સુખ અને ઈષ્ટ પદાર્થોની સિદ્ધિ થાય છે. मज्ञानवाही सस: (१७) मारना छे. ते मा प्रभाग छ-७१, म७१, વિગેરે નવ પદાર્થોને ક્રમથી લખવામાં આવે અને દરેકની નીચે આગળ કહેવામાં આવનારા સાત ભાંગાએ લખવામાં આવે તે સાત ભંગાએ આ प्रभारी छ. सत् , असत् सहसतू , अवतव्य, सत् मतव्य, असत् म. ક્તવ્ય અને સત્ અસત્ અવક્તવ્ય. વિકલ્પનું ઉચ્ચારણ આ પ્રમાણે કરવું જોઈએ, श्री सूत्रतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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