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________________ - - - १९४ सूत्रकृताङ्गसूत्रे इति । ग्रामादौ मायो बाहुल्येन श्रद्धाशीलानां निवासस्थानं भवति, तत्र यदि धर्म श्रद्धालु धर्मबुद्धया हिंसामयं कार्य कुर्यात-कुर्वन् साधु पृच्छेद् यन्मदीयमिदं कार्य शोभनं न वा ? तदाऽऽस्मगुप्तो जितेन्द्रियः साधु स्तादृशे सावधकार्येऽनुमति नैव दयादिति भावः ॥१६॥ साधुः सावद्यकार्येऽनुमति न दद्यादेतद्विषये पत्रकार आहमूलम-तेहा गिरं समारब्भ, अस्थि पुण्णं ति णो वैए । अहवा णस्थि पुण्णं ति, एवमेयं महब्भयं ॥१७॥ ". छाया--तथागिरं समारभ्य, अस्तिपुण्यमिति नो वदेत् । अथवा नास्तिपुण्य मित्येतन्महाभयम् ॥१७॥ ग्राम आदि में प्रायः श्रद्धालु जनों के स्थान होते हैं, जहां साधु ठहर जाते हैं। ऐसे स्थानों में अगर कोई धर्म श्रद्धालु धर्म बुद्धि से हिंसामय कार्य करे और साधु से पूछे कि मेरा यह कार्य अच्छा है या नहीं ? तो आत्मगुप्त एवं जितेन्द्रिय साधु उस सावध कार्य में अनुमति प्रदान न करे ॥१६॥ साधु सावध कार्य में अनुमति न दे, इस विषय में सूत्रकार कहते हैं-तहा गिर समारब्भ' इत्यादि। शब्दार्थ-'तहा गिर समारम्भ-तथा गिर समारभ्य उम प्रकारकी वाणी सुनकर 'अस्थि पुण्णंति णो वए-अस्ति पुण्यमिति नो वदेत्' पुण्य है ऐमा न कहे 'अहवा णस्थि पुष्णंति-अथवा नास्ति पुण्यमिति' अथवा पुण्य नहीं है इस प्रकार का कथन भी 'एवमेयं महाभयं-एकमेतन्महाभयम्' यह कहना भी महान् भए जनक है ॥१७॥ ગ્રામ વિગેરેમાં પ્રાયઃ શ્રદ્ધાળું મનુષ્યોને નિવાસ હોય છે, કે જ્યાં સાધુ રહી જાય છે. એવા સ્થાનમાં અથવા જો કેઈ ધર્મ શ્રદ્ધાળુ ધર્મબુદ્ધિથી હિંસામય કાર્યકરે અને સાધુને પૂછે કે-મારૂં આ કાર્ય સારું છે કે નહીં? તે આત્મગુપ્ત અને જીતેન્દ્રિય એવા સાધુએ તે સાવદ્ય કાર્યમાં અનુમતિ भावी नहीं ॥१६॥ સાધુ સાવદ્ય કાર્યમાં અનુમતિ ન દે, આ વિષયમાં સૂત્રકાર કહે છે है-'तहा गिर समारभ' इत्यादि शहाथ:--'तहा गिर समारब्भ-तथा गिरं समारभ्य' सारनी al Hinीने 'अत्थि पुण्णति णो वए-अस्ति पुण्यमिति नो वदेत्' ५५५ थाय छे. तेम 1 डे, 'अहवा गत्थि पुण्णति-अथवा नास्ति पुण्यमिति' अथवा युएय नया श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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