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________________ -- JAR १७६ सूत्रकृताङ्गसूत्रे सन्ति, एतया गाथया पश्च जीवकायाः प्रदर्शिताः, षष्ठं त्रसजीवकायम् अग्रिमगाथायां वक्ष्यति ॥७॥ मूलम्-अहा वेरा तसा पाणा एवं छक्काय आहिया। एतावए जीवकाए णावरे कोई विज्जई ॥८॥ छाया-अथापरे त्रसाः प्राणाः, एवं षट्काया आख्याताः। एतावानेन जीवकायो नापरः कश्चिद्विद्यते ॥८॥ अन्वयार्थ:--(अहावरा तसा पाणा) अथाऽनन्तरम् अपरे-अन्ये त्रसा:द्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियाः (एवं छक्काय आहिया) एवम्-अनन्तरोक्तमकारेण षड्विधा जीव भी पृथक् पृथक् जीव रूप है इस गाश से पांच प्रकारके जीवनि कायको दिखलाया हैं छठा त्रस जीवनिकाय आगेकी गाथा में कहें हैं। आशय यह है, कि पृथिवीकाय आदि बहुत से जीव हैं इन जीवों कि विराधना न करने से चारित्र का मार्ग विशुद्ध होता है ॥७॥ 'अहावरा तसा' इत्यादि। शब्दार्थ-'अहावरा तसा पाणा-अथापरे प्रसाः प्राणाः' इससे भिन्न, ३, त्रसकाय बाले जीव होते हैं 'एवं छकाय आहिया-एवं षट्काया आख्याताः' इस प्रकार तीर्थकरने जीवों के छ भेद कहे हैं। 'एता. वए जीवकाए-एतावानेव जीयकाय:' इतना ही जीवों का भेद कहा है 'नावरे कोई विजई-नापरः कश्चिविद्यते' इनसे भिन्न दूसरा कोई जीव का भेद होता नहीं है ॥८॥ __ अन्वयार्थ--इनके अतिरिक्त त्रस प्राणी अर्थात् दीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, પાંચ પ્રકારના જવનિકાનું કથન કરેલ છે. છઠ્ઠા ત્રણ જવનિકાય આગળની ગાથામાં કહેશે. કહેવાનો આશય એ છે કે–પૃથ્વીકાય વિગેરે ઘણા જીવો છે. આ જીની વિરાધના ન કરવાથી ચારિત્રને માર્ગ વિશુદ્ધ થાય છે. હા 'अहावरा तसो' इत्यादि शा--'अहावरा तसा पाणा-अथापरे त्रसाः प्राणाः' मानाथी ! सायवाणा व डाय छे. 'एवं छक्काय आहिया-एवं पदकाया आख्याताः' मा शत तय ४२। मेवाना प्रायन लेहो हा छे. 'एतावए जीवकाए -एतावानेव जीवकायः' मा वाना हो या छे. 'णावरे कोइ विजई लापरः कश्चिद्विद्यते' मानाथी अन्य छ ५ ले सपना डात नथी ॥८॥ અન્વયાર્થ–આ સિવાય ત્રસ પ્રાણ અર્થાત્ દ્વીન્દ્રિય-ત્રીન્દ્રિય-ચતુરિ. श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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