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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ६ उ.१ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ५४१ ___अश्यार्थः -(से पमू) स प्रभुरः (सराइमत्तं इतिथ पारिया) सरात्रिभक्तां स्त्रियं वारयित्वा-रात्रिभोजनं स्त्रीसेवनं च परित्यज्य (दुक्खखयट्टयाए) दुःखक्षयार्थम्-कर्मनाशाय (उपहाणवं उपधानवान-तीव्रतपोनिष्ठप्रदेशः (आरं परं च लोगं विदित्ता) आरं च परं च लोकं विदित्या इह लोकं परलोकं तत्कारणं च ज्ञात्या (सन्धवारं सध्यं वारिय) सर्वचारं सर्व वारितवान्-सर्वमेतत् बहुशो निवारितवान् पुनः पुन: प्राणातिपातादिनिषेधं स्वतोऽनुष्ठाय परांश्च स्थापितवान् इति ॥२८॥ टीका-'से पभू' स भुर्भगयान तीर्थकरः 'सराइभत्तं इत्थी वारिया' सरात्रिभक्तां स्त्रियं वारयित्वा, रात्रौ मक्तं भोजनमितिरात्रिभक्तम् , रात्रिभोजन 'से वारिया' इत्यादि। __ शब्दार्थ-'से पभू-स प्रभुः' वह प्रभु महावीर स्वामी 'सराइमतं इत्थी यारिया-सरात्रिभक्तां स्त्रियं चारषित्वा' रात्रि मोजन और स्त्रीको छोड कर के 'दुक्खखयपाए-दुःखक्षयार्थम्' दुःख के क्षपके लिये 'उचहाणवं-उपधानवान्' तपस्या में प्रवृत थे 'आरं परं च लोगं विदित्ताआरं परं च लोकं ज्ञात्या' इसलोक तथा परलोक को जानकर 'सधवारं सव्वं वारिय-सर्ववारं सर्व वारितवान्' भगवान्ने सब प्रकार के पापको छोड दिया था ॥२८॥ अन्वयार्थ प्रभु महावीर ने रात्रिभोजन के साथ स्त्री सेवन को भी त्याग कर दुःखो का क्षय करने के लिए, तपश्चर्या से युक्त होकर इहलोक परलोक और उनके कारणों को विदित करके सब पापों को पूर्ण रूप से त्याग दिया था ॥२८॥ " से वारिया " त्याह Aver-'से पभू स प्रभुः' ते प्रभु महावीर स्थाभी 'सराइभत्तं इत्थी वारिया-सरात्रिभतां त्रियं वारयित्वा' विमोचन भने सीने छीन 'दुक्खरखयट्टयाए-दुःखक्षयार्थम्' हुमना क्षयमाटे 'उपहाणवं-उपधानयान्' त५. श्यामा प्रवृत्त जता 'आरं परं च लोग विदित्ता-आर' परंच लोकं ज्ञात्वा' या सो मने परोने न 'सव्यवारं सव्वं वारिय-सर्यवार सर्व वारितवान्' मापाने मया ५४१२ पापने छोडी पाहता ॥ १८ ॥ સૂત્રાર્થ–મહાવીર પ્રભુએ રાત્રિભેજનની સાથે સ્ત્રીવનને પણ સર્વથા પરિત્યાગ કર્યો હતો. દુઃખને (કર્મોનો ક્ષય કરવાને માટે, તેમણે ઘેર તપસ્યા કરી હતી. તેમણે આ લેક, પરલોક અને તેમનાં કારણેને જાણ લઈને સમસ્ત પાપાને સર્વથા ત્યાગ કર્યો હતે. ૨૮ શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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