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________________ % 3D ८ ११ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ३ उ. १ दंशमशकादिपरीषहनिरूपणम् २७ दंशमशकादि परीषहमाह-'पुट्ठो य' इत्यादि । मूलम्-पुट्ठो य दंसमसएहिं तणफासमचाइया । न मे दिट्टे परे लोए जइ परं मरणं सिया ॥१२॥ छाया--स्पृष्टश्च दसमशकैस्तृगस्पर्शमशक्नुवन् । न मया दृष्टः परलोको यदि परं मरणं स्यात् ॥१२॥ अन्वयार्थ :-- (दंसमसएहिं) दंशमशकैः (पुट्ठो) स्पृष्टश्च भक्षितः तथा (तणफासमचाइया) तृणस्पर्शमशक्नुवन् निकिचनत्वात् तृणेषु शयानः तत्स्पर्शमशक्नुवन कदाचिदेवं चिन्तयेत् (मे) मया (परे लोए) परो लोकः स्वर्गादिरूपः (न दिद) दंश मशक आदि परीषहों का कथन करते हैं-'पुट्टो य' शब्दार्थ-'दंसमसएहि-दंशमशकै. दंश और मशकों द्वारा 'पुट्ठोस्पृष्टः' स्पर्श किया गया अर्थात् काटा गया तथा 'तणफासमचाइयातृणस्पर्शमशक्नुवन्' तृणस्पर्श को नहीं सह सकता हुआ साधु ऐसा भी विचार कर सकता है कि 'मे-मया मैने 'परलोए-परलोकः' स्वर्गादि रूप परलोक को तो 'न दिढे-न दृष्टः' प्रत्यक्ष रूप से देखा नहीं है 'परंपरंतु' तथापि 'जइ-यदि' कदाचित् 'मरणं सिया-मरणं स्यात्' इस कष्ट से मरणतो स्पष्ट दिखता है और कोई फल दीखता नहीं है॥१२॥ अन्वयार्थ-दंशमशक परीषह अर्थात् डांस मच्छरों के डंसने पर तथा तृणस्पर्श परीषह को सहन न करसकने के कारण अर्थात् अकिंचन होने से घास पर शयन करते हुए उसके कठिन स्पर्श को महन न कर सकने से साधु कदाचित् इसप्रकार विचार करे परलोक तो मैंने देखा હવે સૂત્રકાર ડાંસ, મચ્છર આદિ દ્વારા આવી પડતાં પરીષનું ४थन ४२ छ-'पुट्ठो य' त्यहि शा-'दंसमसपहि-दंशमशकैः' ६ भने मश। द्वारा 'पुढो-स्पृष्टः' २५० ४२ामा मावसमर्थात् ३२७१ामा मावेत तथा 'तण फासमचाइयातृणस्पर्शमशक्नुवन्' तृपना २५॥ न सहन न री ४ापाजो साधु सेवा विचार रे छे 'मे-मया में "परे लोए-परो लोकः' २१॥ वगेरे ३५ ५२सोमनात 'न दिवे-न दृष्टः'प्रत्यक्ष ३५थी नयी नयी 'परं-परं' तो ५५ 'जइ-यदि' हाय 'मरण सिया-मरणं स्यात्' माथी भ२० ते २५ नेयाय छ भने ३० मातु नथी. ॥१२॥ સૂત્રાર્થ–દંશમશક પરીષહ એટલે કે ડાંસ, મચ્છર આદિ જંતુ કરડવાથી જે ત્રાસ સહન કરે પડે છે તે ત્રાસ સહન કરવાને પ્રસંગ આવે ત્યારે તથા તૃણસ્પર્શ પરીષહને સહન ન કરી શકુવાને કારણે (અકિંચન હોવાને કારણે ઘાસ પર શયન કરતી વખતે તેના કઠિન પર્શ સહન ન કરી શકવાને કારણે) શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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