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________________ २९४ सूत्रकृतानसूत्रे छाया-कुष्ठं तगरं चाऽगुरु संविष्टं सम्यगूउशीरेण । तैलं मुखाऽभ्यगाय वेणुफलानि सनिधानाय ॥८॥ अन्वयार्थ:--(उसिरेणं सम्मं संपिटुं) उशीरेण वीरणमूलेन सह सम्यक संपिष्टं मिश्रित (कुटुं तगरं च अगुरु) कुष्ठं तगरमगुरुम् आनीय मह्यं देहि (मुहभिलिजाए) मुखाम्पङ्गाय (तेल्लं) तैलं-मुगन्धितम् , तथा (वेणुफलाई) वेणुफलानि वेणुफलकानि वस्त्रादिस्थापनाय आनीय देहि इति ॥८॥ टीका--कुहमित्यादि। हे माणप्रिय ! संयत्त ! 'उसिरेणं' उशीरेण-वीरणमलेन 'संपिटुं' संविष्ट-संमिश्रितम् 'कुई तगरं च शुरूं' कुष्ठ तगरम् अगुरुं तत्र-कुष्ठं 'कुटुं तगरं च' इत्यादि शब्दार्थ-'उसिरेणं सम्म संपिटु-उशीरेण सम्यक संपिष्टं' खस के साथ अच्छी तरह पीसे हुवे 'कुट्ट तगरं च अगुरु-कुष्टं तगरंचागुरु' कुष्ठ-कमल के गन्धयुक्त सुगन्धद्रव्य तगर और अगर लाकर मुझे दो 'मुहभिलिं जाए-मुखागाय' मुख में लगाने के लिये 'तेल्लं-तैल' सुगन्धि तैल और 'सन्निधानाए-सन्निधानाय वस्त्रादि रखने के लिये 'वेणुफलाई-वेणुफलानि' वांसकी बनी हुई एक पेटी ला कर दो ॥८॥ ___अन्ववार्थ--वह कहती है-उशीर (खस) की जड के साथ अच्छी तरह पीसे हुये कुष्ठ, तगर और अगर लाकर मुझ को दो । मुख में मलने के लिये तैल तथा वस्त्रादि रखने के लिये पेटी भी ला दो ॥८॥ टीकार्थ-स्त्री कहती है-हे प्राणनाथ ! खसखस के साथ खूब पीसे हुए कुष्ठ, तगर और आर लाकर दो। यहां कुष्ठ का अर्थ है कमल की 'कुतगरं च" छत्या -- हा-"उसिरेणं सम्म संपिटुं-उशीरेण सम्यक् संपिष्टम्' मसनी साथ सारी रीते पारे'कुटुं तगरं च अगुरुं-कुष्ट तगर च अगुरुं' -भजनी अन्यथी युत सुमद्र०य तर भने मगर भने दावी मापी. 'मुहभिलिंजाए -मुखागाय' भुममा ८ माटे तेल-तैलमू' सुजवा ते मन 'सनिधानाए-सन्निधानाय” वनो बगेरे रामा माटे 'वेणुफलाई-वेणुफलानि' વાંસની બનેલી એક પેટી મને લાવી આપે. ૮ સૂવાર્થ--તે કહે છે કે-ઉશીર (ખ) નાં મૂળની સાથે સેટેલાં કુષ્ઠ, તગર અને અગર મને લાવી દે. મુખ પર લગાવવાને માટે મને સુગધિ. દાર તેલ લાવી દે. મારાં કપડાં રાખવાને માટે એક પેટી પણ લેતા આવજે. ૮ શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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