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सूत्रकृताङ्गसूत्रे छाया--अपि हस्तपादच्छेदान अथवा वर्द्ध मांसोत्कर्त्तनम् ।
____ अपि सेजसाभित्तापनानि तक्षयित्वा क्षारसे चनानि च ॥२१॥
अन्वयार्थः--(अचि हत्यपाद दाए) अपि हस्तपादच्छेदाय-इहलोके परस्त्री संपर्कोऽपि हस्तपादच्छेदाय भवति (अदुवा) अथवा (बद्धमंसउक्ते) वर्द्धमांसोत्कतननं चर्ममांसकतनाय भवति (मवि तेयसामितावणाणि) अपि तेजसामितापनानि
स्त्री सम्बन्ध का फल कैसा होता है, यह तो शास्त्र से ही जाना जा सकता है, किन्तु लोक में भी उसका फल अतीव दुःख जनक होता है, इस तथ्य को दिखलाने के लिए सूत्रकार कहते हैं-'अवि हत्य'इत्यादि।
शब्दार्थ-'अवि हत्यपादळे दाए-अपि हस्त्रपाइछेदाय' इस लोक में स्त्री का संबंध हाथ और पैर का छेदन के लिए होता है 'अदुवा-अथवा' अगर 'बद्धमंसउक्कते-वर्द्धमांसोत्कर्तनम्' चमडा और मांस को कतरने रूप दण्ड जनक होता है 'अवि तेयप्ताभितावणाणि-अपि तेजसाभितापनानि' अथवा अग्नि से जलाने रूप दण्ड के योग्य होता है 'च-च' और 'तच्छिय खारसिंचणाई-तक्षयित्वा क्षारसिंचनानि' उनके अङ्गका छेदन करके उसके ऊपर क्षार सिंचनरूप दण्ड के योग्य होता है ।।२१।। __ अन्वयार्थ---इस लोक में स्त्रियों का सम्पर्क हाथ पग के छेदन के लिए होता है, अथवा चर्म और मांस को काटने के लिए होता है परस्त्री
સ્ત્રી સંપર્કનું કેવું ફળ ભોગવવું પડે છે, તે તે શાસ્ત્રોમાંથી જ જાણી શકાય છે, પરંતુ લેકમાં પણ તેનું ફલ અતિ દુ:ખજનક જ હોય છે, તે વાતનું वे सूत्र॥२ नि३५५५ रे छे..-'अधि हत्य' ध्याह
___Avat - 'अवि हत्वपादछेदाए-अपि हस्तपादछे दाय' . twi સ્ત્રીની સાથે સંબંધ તે હાથ અને પગને કપાવી નાખવા માટે હેય छ. 'अवा-अथवा' असर 'बद्धमं न उक्कते-बद्धमांसोत्कर्तनम्' याम माने भाजन ॥ anय ४२ यो२५ मने छे. 'अवि तेयसाभितावणाणि-अपि तेजसाभितापनानि' मा अमिथी जाने यो भने छ. 'च-च' भने 'छिय खारसिंवण इं-तक्षयित्वा क्षारसिंचनानि' तेन मार्नु छेन शने तना ઉપર મીઠું ભભરાવારૂપ દંડને એગ્ય બને છે. ૨૧
સત્રા-આ લેકમાં સ્ત્રીસંગમ કરનાર લોકોના હાથ, પગ આદિ અંગે કાપી નાખવામાં આવે છે અથવા ચામડી અને માંસ કાપવામાં આવે છે. પરસ્ત્રી
શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨