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________________ १२० सूत्रकृताङ्गसूत्रे नम् आधार्मिकोदेशिकादिभोजनं तथा शुद्धसंयमिनामाक्षेपकरणम् एष तव मार्गः 'न णियए' न नियतः, न नियतो न युक्तिसंगतः। 'वई' वचनं तत् साधुमुद्दिश्य यदाक्षेपवचन भवद्भिः प्रतिपादितम् । तदपि-'असमिकव' असमीक्ष्य, विचारमन्तरेणैव कथितम् । तथा 'कई' कृतिः भवतामाचरणमपि न समीचीनमिति॥१४॥ मूलम्-एरिसा जो वैई एसी अग्गवेणुव्व करिसिता। गिहिणो अभिहडं सेयं भुंजिउँण उ भिक्खुणं ॥१५॥ छाया-ईदृशी या बागेपा अग्रवेणुरिव कर्षिता। गृहिणोऽस्याहृतं श्रेयः भोक्तुं न तु भिक्षूणाम् ।।१५।। प्रकार कहे-गृहस्थ के पात्र में भोजन करना और षिमार साधु के लिए गृहस्थ द्वारा भोजन मंगवाना, आधाकर्मी एवं औद्देशिक आहार करना और शुद्ध संयम का पालन करने वालों पर आक्षेप करना, यह आप का मार्ग युक्तिसंगत नहीं है। साधु के विषय में आप ने जो आक्षेप वचन कहे हैं, वह आप के वचन विना विचारे ही कहे गए हैं। इसके अतिरक्त आप का आचार भी समीचीन नहीं है' ॥१४॥ शब्दार्थ-'एरिसा-ईदृशी' इस प्रकार की 'जा-या' जो 'वई-वागू' कथन है कि 'गिहिणो अभिडं-गृहिणोऽभ्याहृतम्' गृहस्थ के द्वारा लाया हुआ आहार 'भुंजिउं सेयं भोक्तुं श्रेयः साधु को ग्रहण करना कल्याणकारक है 'ण उ भिक्खुर्ण-न तु भिक्षूणाम्', परन्तु साधु के द्वारा लाया हुआ आहारादिक लेना ठीक नहीं है 'एसा-एषा' यह बात 'अग्गवेणुव्व करिसिता-अग्रवेणुरिव कर्षिताः' बांस के अग्रभाग के जैसा कृश दुर्बल है। १५॥ અને બિમાર સાધુને માટે ગૃહસ્થ દ્વારા ભેજન મંગાવવું-આધાકર્મ દેષ યુક્ત તથા ઔદેશિક દેષયુક્ત આહાર કર, તથા શુદ્ધ સંયમનું પાલન કરનારા જૈન સાધુઓ પર આક્ષેપ કરે. આ તમારી રીતે યુક્તિસંગત નથી જૈન સાધુઓ સામે તમે જે આક્ષેપ વચનો ઉચાર્યા છે તે વગર વિચાર્યે જ ઉચ્ચાર્યા છે. સાધુઓ સામે આ પ્રકારના આક્ષેપ કરનારા આપ લોકોનો આચાર પણ ચગ્ય (શુદ્ધ-દેષરહિત) નથી. ગાથા ૧૪ शाय--'एरिस्म-ईशी' मा सरनी 'जा-या' २ 'बई-धाग्' यन छे, 'गिहिणो अभिहडं-गृहिणोऽभ्याहृतम्' स्थान द्वारा मां मावेल साहार वगेरे देवा ही नथी 'एसा-एषा' मा पात 'अग्गवेणुव्वकरिसिता-अप्र. वेणुरिव कर्षिताः' पसिना मन लागेना म श हु छे. ॥१५॥ શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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