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________________ समयार्थ बोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. २ उ. ३ साधूनां परीषहोपसर्ग सहनोपदेशः ६६१ पुनरप्युपदेशान्तरमधिकृत्याह सूत्रकारः-'दुक्खी मोहे' इत्यादि । मूलम्दुक्खी मोहे पुणो पुणो निविदेज्ज सिलोगपूयण । ८ ७ १३ १२ १२ १० एवं सहिए अहिपासए आयतुल्ले पाणेहिं संजए॥१२॥ छायादुःखी मोहं पुनः पुननिर्विन्देत श्लोकपूजनम् । एवं सहितोऽधिपश्येद् आत्मतुल्यान् प्राणान् संयतः ॥१२॥ अन्वयार्थः(दुक्खी) दुःखी जीयः(पुणोपुणो) पुनः पुनः (मोहे) मोहम् प्राप्नोति (सिलोगपूयणं) श्लोकपूजनम् स्तुतिसंस्तवम् (निविदेज) निर्विन्देत परित्यजेत् सूत्रकार पुनः उपदेश करते हैं- "दुक्खी मोहे" इत्यादि शब्दार्थ-दुक्खी-दुःखी' दुःखी जीव 'पुणो पुणो-पुनः पुनः' बार बार 'मोहे-मोहम्' अविवेकको प्राप्त करता है 'सिलोगपूयणं-श्लोकपूजनम्' अतः साधु अपनी स्तुति और पूजा 'निविंदेज्ज-निर्विन्देत' त्यागदेवे 'एवं-एवम् इस प्रकार 'सहिते-सहितः' ज्ञानादियुक्त 'संजए-संयतः' साधु 'पाणेहिंप्राणान्' प्राणियों को 'आयतुल्ले-आत्मतुल्यान्' अपने समान' अहियासएअधिपश्येत्' देखे ॥१२॥ -अन्वयार्थ-- दुःखी जीव यार वार मोह को प्राप्त होता है साधु पुरुष श्लोक श्लाघा को अर्थात् प्रशंसा सन्मान आदि को त्याग और सम्यग् ज्ञानादि 2101 २५ मापता सूत्र४५२ ४ छ । “ दुक्खीमाहे" त्यात शहाथ-'दुक्खी-दुःखी' हुमी ०५ 'पुणो पुणो-पुनः पुनः' पार पार 'मोहे-- मोहम्' मयि ने प्रात ४३ छ 'सिलोगपूयण श्लोकपूजनम्' अत: साधु पोतानी स्तुति अने पूत 'निविदेज-निविदेत' छाडी हे 'एवं--एवम्' २मा प्रारे 'सहिते-सहितः' ज्ञान पोथी युत 'सजए- संयतः' साधु पाणेहि-प्राणान्' प्राणुिगाने 'आयतुल्ले-- आत्मतुल्यान्' पोताना समान 'अहिपासए-अधिपश्येत्' दु. ॥ १२ ॥ -सूत्राथદુખી જીવ વાર વાર મેહને આધીન બને છે. સાધુઓએ કલેક-કલાધા (પ્રશંસા, શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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