SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 634
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयार्थ बोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. २ उ. २ स्वपुत्रेभ्यः भगवदादिनाथोपदेशः ६२१ तदुक्तः सामायिको धर्मः प्राणिभिः कदापि न पूर्व प्राप्त इत्येतदर्शयति सूत्रकारः ‘णहि शूण पुरा' इत्यादि । णहि णूण पुरा अणुस्सुयं अदुवा तं तह णो समुट्ठियं । मुणिणा सामाय आहियं नाएणं जगसव्वदंसिणा ॥३१॥ छायानहि नूनं पुराऽनुश्रुतमथवा तत्तथा नो समनुष्ठितम् । मुनिना सामायिकाद्याख्यातं ज्ञातेन जगत्सर्वदर्शिना ॥३१॥ अन्वयार्थ:(जगसव्वदंसिणा) जगत्सर्वदर्शिना (नाएण) ज्ञातेन=ज्ञातपुत्रोण (मुणिणा) मुनिना (सामाय आहियं) यत् सामायिकम् सायद्यविरतिलक्षणम् आख्यातम् प्रकाशितम् तत् (पूर्ण) नूनं निश्चितम् (पुरा) पुरा पूर्वम् तीर्थकरोपदेशात्पूर्व तीर्थकरों का कहा हुआ सामायिक धर्म प्राणियों ने पहले कभी प्राप्त नहीं किया है, यह बात सूत्रकार दिखलाते हैं-"न हि गुण” इत्यादि । शब्दार्थ-'जगसव्वदंसिणा-जगत्सर्वदर्शिना' समस्त जगत् को देखने वाले 'नाएण-ज्ञातेन' ज्ञातपुत्र 'मुणिणा-मुनिना' मुनिने 'सामाइयं आहियंसामायिकम् आख्यातम्' सावधविरति लक्षण सामायिक कहा है वह 'शूणंनूनम्' निश्चय से 'पुरा--पुरा' तीर्थकरके उपदेश से पहले 'ण हि अणुस्सुयं-नहि अनुश्रुतम्, जीवने नहीं सुना है 'अदुवा' अथवा' अगर सुना हो तो भी 'तं-तत्'उस सामायिक को 'तहा-तथा' तीर्थ करके कथनानुसार ‘णो समुट्ठियं-नो समनुष्ठितम् उस प्रकार उसका अनुष्ठान नहीं किया है।॥३१॥ તીર્થકરે દ્વારા પ્રતિપાદિત સામાયિક ધર્મની જેને પહેલાં કદી પ્રાપ્તિ થઈ नथी, मे पातने सूत्रा२ ५४८ ४२ छ- “ न हि खूण " त्या शा---'जगसव्वदसिणा-जगत्सर्वदर्शिना' समस्त तने नवापार 'नाएण-ज्ञातेन' शातपुत्र ‘मुणिणा-मुनिना' भुनिये 'सामाइय-सामायिकम्' साप वि२ति क्षण सामायि: पोरे . ते 'Yण-नूनम्' निश्चयथा 'पुग-पुरा' तीथ-- ४२ना उपदेश ५९मा ‘णहि अणुस्सुय-नहि अनुश्रुतम्' ७वे सलज्यु नथी 'अदुवा अथवा' २२ सामन्यु डाय तो ५५ 'त-तत्' त सामायिने 'तहा-तथा' ती ४२न। ४थनतम् अनुसार ‘णो समुट्ठिय-नो समनुष्टि' ते प्रा२ तेभनु मनु४ान४२८ नथी.u31 શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy