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________________ समंधार्थ बोधिनी टीका प्र.श्र. अ. २ उ. २ स्वपुत्रेभ्यः भगवदादिनाथोपदेशः ५८७ छायाशीतोदकप्रतिजुगुप्सकस्य अप्रतिज्ञस्य लवावसर्पिणः । सामायिक माहुस्तस्य यत् यो गृह्यमोऽशनं न भुक्त ॥२०॥ अन्वयार्थः (सीयोदगपडिदुगुंछिणो) शीतोदकानतिजुगुप्सकस्य-शीतोदकमप्राशुकं जलम् तत्मतिजुगुप्सकस्य अपाशुकोदकपरिहारिणः साधोः, (अपडिण्णस्स) अप्रतिज्ञस्य% प्रतिज्ञारहितस्य (लवावसप्पिणो) लवावसर्पिणः लवं कर्म तस्मात् अवसर्पिणः परित हारिणः, (तस्स) तस्य एवंभूतस्य साधोः (जं)यत यस्मात्कारणात (सामाह) सामायिक-समभावम् (आहु) आहुः कथितवन्तः सर्वज्ञाः। (जे) य: मुनिः शब्दार्थ-'सीयोदगपडिदुगुंछिणो-शीतोदकप्रतिजुगुप्सकस्य' जो साघु शीतोदक से घृणा करता है 'अपडिष्णस्स-अप्रतिज्ञस्य तथा कोई भी प्रकार की प्रतिज्ञा अर्थात् कामना नहीं करता है 'लवावसप्पिणो लवावसर्पिणः' एवं जो कर्मबन्धको उत्पन्न करने वाले कर्मों के अनुष्ठान से दूर रहता है 'तस्स-तस्य' ऐसे साधु का सर्वज्ञों ने 'ज-यत् जो 'सामाइयं-सामायिकम् , समभाव 'आहु-आहुः' कहा है तथा 'जे--यः' जो मुनि 'गिहिमते-गृह्यमत्रे गृहस्थ के पात्र में 'असणं-अशनम्' आहार 'ण भुंजइ--न भुंक्ते नहीं खाता है उसका समभाव है।॥२०॥ -अन्वयार्थ-- सचित्त जलके त्यागी, निदान रूप प्रनिज्ञा के त्यागी, 'लव अर्थात् कर्म का त्याग करने वाले उसी साधु को सामायिक चारित्र कहा गया है जो गृहस्थ के पात्र में भोजन नहीं करता ॥२०॥ शम्हा- 'सीयोगपडिदुगुछिणो-शीतोदकप्रतिजुगुप्सकस्य' साधु शिता थी धृष्णा ४२ छ. 'अपडिण्णस्स-अप्रतिज्ञस्य तथा ५ प्रा२नी प्रतिज्ञा अर्थात् अभना ४२ता नथा. 'लवावसप्पिणो-लवावसर्पिणः' शव को मन धने अत्यन्न ४२वावाणा अर्भाना मनु हानथी २ २ छ. 'तस्स-तस्य' सेवा साधुनी सज्ञाये यत्रे 'सामाइय-सामायिकम्' सभा 'आहु-आहुः' मा छ तथा 'जे-यः' भुनि "गिहिमत्ते-गृह्यमत्रे उत्थना पत्रमा 'असण-अशनम्' माडा२ ‘ण भुजइ-न भुंक्ते' माता નથી તેને સમભાવ છે. ૨૦ છે सूत्राथસચિત્ત જળના ત્યાગી, નિદાન રૂપ પ્રતિજ્ઞાના ત્યાગી, લવને (કર્મ) ત્યાગ કરનારા એવા એ સાધુને જ સામાયિક ચારિત્રવાળે કહ્યું છે કે જે ગૃહસ્થના પાત્રમાં ભેજન કરતે નથી. ૨૦ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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