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________________ समयाबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ.२ उ. १ भगवदादिनाथकृतो निजपुत्रोपदेशः ४९१ छायापुरुष उपरम पापकर्मणा पल्यान्तं मनुजस्य जीवितम् । सक्ता इह काममूच्छिता मोहं यान्ति नरा असंवृताः ॥१०॥ अन्वयार्थः( पुरिस ) पुरुष ! हे पुरुष ! ( पावकम्मुणा ) पापकर्मणा-प्राणातिपातादिकर्मणा (उपरम) उपरम-निवर्तस्व यतः (मणुयाण) मनुजानाम् जीवियम् जीवि मिथ्याज्ञान से युक्त तपस्या के द्वारा चार गतियों का भ्रमण नहीं कर सकता है, किन्तु वीतराग द्वारा प्रणीत मार्ग से ही श्रेयस (कल्याण) की प्राप्ति होती है भवभ्रमण का निरोध होता है । इस अर्थवाला उपदेश देने के इच्छुक सूत्रकार यह गाथा कहते हैं- "पुरिसो रम इत्यादि । शब्दार्थ-'पुरिसो-पुरुष' हे पुरुष! 'पावकम्मुणा-पापकर्मणा' प्राणातिपातादि पापकर्यसे 'उपरम-उपरम' तू निवृत्त होजा क्योंकि 'मणुयाणं-मनुजानाम्' मनुष्यों का 'जीवियं-जीवितम्' जीवन 'पलियंत-पल्यान्तम्' नाशवंत हैं 'इह--इह' इस संसारमे 'सबा--सक्ताः ' जो आसक्त है तथा 'काममुच्छियाकाममूच्छिताः' कामभोगो में आसक्त हैं एवं 'असंवुडा--असंवृताः' प्राणातिपात आदिसे निवृत्तनहीं हुए हैं 'नरा--नराः' ऐसे मनुष्य 'मोहं-मोहम्' मोहको 'जति-यान्ति' प्राप्त करते हैं ॥१०॥ -अन्वयार्थहे पुरुष ! तू पापकर्म से विरत हो क्योंकि मनुष्यों का जीवन पल्योपम મિથ્યાજ્ઞાનથી યુક્ત તપસ્યા દ્વારા ચાર ગતિઓનું ભ્રમણ રેકી શકાતું નથી, પરંતુ વીતરાગ પ્રણીત માર્ગનું અનુસરણ કરવાથી જ ભવભ્રમણને નિરોધ થાય છે અને કલ્યાણ કારી મોક્ષની પ્રાપ્તિ થાય છે. આ વાતનું પ્રતિપાદન સૂત્રકારે નીચેની ગાથા દ્વારા કર્યું छ. "पुरिसोरम" त्या शहार्थ 'पुरिसो-पुरुष' 3 ५३१ ? 'पावकम्मुणा-पापकर्मणा' प्रातिपात कोरे पा५४थी 'उपरम-उपरम' तु निवृत्त थ/on उभ3 'मणुयाण-मनुजानाम्' भनुध्यांनु' 'जीविय-जीवितम्' - 'पलियत-पल्यान्तम्' नाशवत छ. 'इह-इह मा संसारमा 'सन्ना-सक्ताः' मासत छ तथा 'असं बुडा-असं वृताः' प्राणातिपात कोथी निवृत्त नथी च्या. 'नरा-नरा' मेवा मनुष्यो 'मोह-मोहम्' भाहने जतियान्ति' प्रास छे. ॥१०॥ હે પુરૂષ! તું પાપકર્મથી વિરત થા, કારણ કે માણસનું જીવન વધારેમાં વધારે શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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