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________________ सूत्रकृताङ्गसूत्रो "जगत्सृष्टिविषये ततोऽन्येषां मतं दर्शयति सूत्रकारः-"माहणा समणा" इत्यादि। मूलम् माहणो समणा एगे आह अंडकडे जगे असो तत्तमकासीय अयाणंता मुसं वदे-॥८ छायाबाह्मणाः श्रमणा एके, आहुरण्डकृतं जगत् । असौ तत्त्वमकार्षीचा जानन्तो मृषा वदेत् -८ अन्यवार्थ:(एगे) एके केचित् । (माहणा) ब्राह्मणाः =वेदवादिनः। तथा-(समणा) श्रमणाः त्रिडण्डिप्रभृतयः पौराणिकादयश्च । (जगे) जगत्, स्थावरजंगमात्मको जगत् की रचना के विषय में सूत्रकार अन्य मतों का उल्लेख करते हैं-- 'माहणा समणा,' इत्यादि । शब्दार्थ-एगे-एके' कोई 'माहणा-ब्राह्मण ब्राह्मणाः तथा 'समणा श्रमणाः' श्रमणजन 'जगे-जगत्' यह लोक 'अंडकडे-अंडकृतम्' अंडासे बनाहुवा 'आह -आहुः' कहते हैं 'असो-असौ' यह ब्रह्माने त्तत्तं-तत्त्वम्' पदार्थसमूहको अकासी अकार्षीत्' बनाया है 'अयाणता-अजानन्तः' वस्तुतत्वको न जानने वाले वे ब्राह्मणादि 'मुसं-मृषा' झूठा 'वदे-वदन्ति' कहते हैं ॥८॥ अन्वयार्थकोई कोई ब्राह्मण अर्थात् वेदवादी और श्रमण त्रिदण्डी पौराणिक आदि कहते हैं कि जगत् अंडे से बना है और ब्रह्मा ने पदार्थ समूह की रचना की है। જગની રચનાના વિષયમાં જે અન્ય મતે ચાલે છે તેમને નિર્દેશ કરીને સૂત્રકાર मा मान्यतामाने मिथ्या ४ छ-" माहणा समणा" त्याह शहा--'एगे-एके' 5 'माहणा-ब्राह्मगाः प्राह्मण तथा 'समणा-श्रमणाः' श्रमशान 'जगे-जगत्' 20 (ससा२) 'अंडकडे-अंडकृतम्' माथी भनेर 'आह-आहुः' ४ छे. 'अलो असौं' २॥ ब्रह्माये तत-तत्त्वम्' हा समूडने 'अकासी-अकात्'ि नावेस छे. 'आयणता-अजानन्तः' वस्तुतत्वने न वावा ते ब्राह्मण वगेरे 'मुस-मृषा' मा 'वदे-वदन्ति' ४ छ. ॥८॥ अन्वयार्थકઈ કઈ બ્રાહ્મણ (વેદવાદીઓ) શ્રમણ ત્રિદંડીઓ અને પૌરાણિક કહે છે કે જગત ઈડામાંથી બન્યું છે, અને બ્રહ્માએ પદાર્થ સમૂહની રચના કરી છે. આ પ્રમાણે શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર: ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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