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________________ ३१४ सूत्रकृतास्त्र ज्ञानवादी अज्ञानवादिनामनर्थ दर्शयति- 'एवं तकाइ, इत्यादि । 3 मूलम् १०११ एवं तकाई साहिता, धम्माधम्मे अकोविया । दुक्ख तेनाइ तुटुंति, सउणी पंजरं जहा ॥२२॥ छाया-. एवं तः साधयन्तः धर्माधर्मयोरकोविदाः । दुखं तेनाऽति त्रोटयन्ति शकुनिः पंजरं यथा ॥२२॥ अन्वयार्थ:(एवं) एवम्-उक्तप्रकारेण (तक्काई) तर्कया-तर्केण (साहिता) साधयन्तः स्वकीयं मतम्-"अज्ञानवाद एव श्रेयान्" इत्याकरकं प्रतिपादयन्तोऽज्ञानिनः (धम्माधम्मे) धर्माधर्मयोः (अकोविया) अकोविदाः अज्ञातारः (ते) ते-अज्ञानवा ज्ञानवादी अज्ञानवादियों को होने वाला अनर्थ दिखलाते हैं-'एवं तक्काई, इत्यादि । ___ शब्दार्थ-एवं-एवम्' इसीप्रकार 'तक्काई-तर्कया' तोंसे 'साहिता-साधयन्तः' अपने मतको मोक्षप्रदसिद्धकरते हुए 'धम्माधम्मे-धर्माधर्मयो' धर्म एवं अधम में 'अकोविया--अकोविदाः' नजानने वाले 'ते-ते' अज्ञानवादी 'दुक्खं दुःखम्' दुःखको 'नाइ तु{ति-नाऽति त्रोटयन्ति' अत्यंत नहीं तोडसकते हैं 'जहा--यथा' जैसे 'सउणी-शकुनी' पक्षी 'पंजरं--पञ्जरं पीजडेको नहीं तोडसकते हैं ॥ २२ ॥ -अन्वयार्थउक्त प्रकार से तर्क के द्वारा 'अज्ञान ही श्रेयस्कर हैं अपने इन मत का समर्थन करते हुए अज्ञानवादी धर्मऔर अधर्म के विषय में नासमझ हैं અજ્ઞાનવાદીઓને ક્યા કયાં અનિષ્ટોને અનુભવ કરવું પડે છે, તે હવે સૂત્રકાર घट ४२ छ- "एवं तकाई" त्यात शहाथ-एवं-एवम्' मे प्रमाणे 'तकाई-तर्कया' तथा 'साहिता-साधयन्तः' पोताना भतने मोक्ष प्र सिंद्व२ताया 'ध धम्मे-धर्माधर्मया' धर्म मे अभी 'अकोविया-अकोविदा ना पाया 'ते-ते' मशानवा 'दुक्ख-दुक्खम्' हुमने 'नाइतुति-नाति त्रोटयन्ति' अत्यत शते तो शता नथी. 'जहा-यथाभ 'सउणी -शकुनी' पक्षी 'पंजर पजरम्' ५iराने तोडी ता नथी तेम. ॥२२॥ .. -अ-क्याथપૂર્વોક્ત તર્ક દ્વારા “અજ્ઞાન જ શ્રેયસ્કર છે.” આ પ્રકારના પિતાના મતનું સમર્થન કરતા તે અજ્ઞાનવાદીઓ ધર્મ અને અધર્મના ખરા સ્વરૂપને જાણતા નથી. તેનું શું શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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