SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - २१२ सूत्रकृताङ्गसूत्रो अथासत्कार्यवादि बौद्धमतं दर्शयति-पंचखंधे इत्यादि। मूलम् पंच खंधे वयंतेगे वोला उ खणजोइणो अण्णो अण्णण्णो णेवाहु हेउयं च अहेउयं ॥१७॥ -छायापञ्च स्कन्धान् वदन्त्येके बालास्तु क्षणयोगिनः । अन्यमनन्यं नैवाहु है तुकं च अहेतुकम् ॥१७॥ अन्वयाथे(एगे) एके केचन (बाला उ) बालास्तु सदसद्विवेकविकला बौद्धमतानु यायिनः (पंच) पञ्चसंख्यकान् (खंधे) स्कन्धान रूप-वेदना विज्ञान-सज्ञाहोती है तो सर्वथा सत् कैसे हो सकता है ? अतएव आत्मा को कथंचित् नित्य और कथंचित् अनित्य और सत् असत्-कार्यवाद स्वीकार करना चाहिए अर्थात् द्रव्य रूप से सत् और पर्याय रूप से असत् कार्य की उत्पत्ति होती है ॥१६॥ अब असत्कार्यवादी बौद्धमत को दिखलाते हैं- "पंचखंधे" इत्यादि शब्दार्थ-'एगे-एके कोई ‘बाला उ-बालस्तु' अज्ञानी पंच-पञ्च' पांच 'खधेस्कन्धान' कध 'वयंति-वदन्ति' बताते हैं-कहते हैं 'खणजोइणो क्षणयोगिनः' क्षणमात्ररहने वाले हैं 'अण्णो-अन्यम्' पांच महाभूतों से अन्य 'अणण्णो-अनन्यम्' तथा इससे अभिन्न 'हेउयं-हेतुक" सकारण उत्पन्न 'च-च' तथा 'अहेउय-अहेतुक" दिनाकरण उत्पन्न आत्मा ‘णेवाहु-नैवाहुः' नहीं होता हैं ॥१७॥ -अन्वयार्थकोई कोई सत् असत् के विवेकसे रहित बौद्धमत के अनुयायी अज्ञानी पांच स्कन्ध कहते हैं-(१) रूप (२) वेदना (३) विज्ञान (४) संज्ञा और હોય, તે સર્વથા સત્ કેવી રીતે હેઈ શકે ? તેથી જ આત્માને અમુક દૃષ્ટિએ નિત્ય અને અમુક દૃષ્ટિએ અનિત્ય તથા સતુ-અસત્ કાર્યવાદ સ્વીકાર કરવો જોઈએ. એટલે કે દ્રવ્યની અપેક્ષાએ સત્ અને પર્યાયની અપેક્ષાએ અસત્ કાર્યની ઊત્પત્તિ થાય છે. ગાથા ૧૬ हवे सूत्रा२ असावाही योद्धमतनु विवेयन ४२ छ.- “पंच खधे” त्याह शहा- 'एगे-एके' 'बाला उ-बालस्तु' मज्ञानी 'पंच-पञ्च' यांय 'खधेस्कन्धान्' २४५ 'वयंति-वदन्ति' ४ छ 'अण्णो-अन्यम्' पांय महाभूतो शिवाय अणण्णो-अनन्यम्' मानाथी अन्य 'हेउयं-हेतुकम्' स४२९ अत्पन्न 'य-च' तथा 'अहे. उय-अहेतुक' ४१२विना उत्पन्न मामा ‘णेवाहु-नवाहुः' डात नथी. ॥१७॥ अन्वयार्थ સતુ અસલૂના વિવેથી રહિત અને બદ્ધમતના અનુયાયી એવાં કઈ કઈ અજ્ઞાની લેકે પાંચ સ્પર્ધાનું પ્રતિપાદન કરે છે. તે પાંચ સ્કલ્પના નામ નીચે પ્રમાણે છે. (૧) શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર: ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy