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सूत्रकृताङ्ग पूर्वगाथोक्तं द्वैतात्मवादिमतं निरसितुमुपनामन् सूत्रकार आह–'एगमेवेत्ति' इत्यादि ।
एव मेगेत्ति पंति, मंदा आरंभणिस्सिया । एगे किच्चा सयं पावं, तिव्वं दुक्ख नियच्छह ॥१०॥
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छाया-- एक मेव इति जल्पन्ति मन्दा आरम्भनिश्रिताः । एके कृत्वा स्वयं पापं तीनं दुःखं नियच्छन्ति ॥१०॥
अन्वयार्थः( एवं-एवम् ) अनेन प्रकारेण (एगे-एके) केचन आत्माद्वैतवादिनः (त्ति-इति) पूर्वोक्तप्रकारेण (जंपंति-जल्पन्ति) असत्प्रलापं कुर्वन्ति ते (मंदाप्राप्त होकर अनेक रूपों को धारण करता है। यह पूर्वोद्धत श्रुतियों का अर्थ है। यही आत्माद्वैतवादियाँ की मान्यता है ॥९॥
पूर्वोक्त अद्वैतात्मवादी के मत का निराकरण करने का उपक्रम करते हुए सूत्रकार कहते हैं- "एवमेगे" इत्यदि ॥१०॥
शब्दार्थ-एवं-एवम्' इसप्रकार 'एगे-एके' कितनेक पुरुष 'त्ति-इति' एकही आत्मा है यह 'जप्पं ति-जल्पन्ति' कहते हैं 'मदा-मन्दाः' जडबुद्धि वाले वे 'भारंभ निस्सिया-आरम्भनिश्रिताः' प्राणातिपातादि आरंभमें आसक्त ऐसे 'एगे-पके' कितनेक पुरुष 'सयं-स्वय' स्वयं पाय किच्चा-'पापं कृत्वा' पाप करके 'तिव्वं तीब्र, तान "दुक्ख-दुखम्' दुखको 'नियच्छह-नियच्छन्ति' प्राप्त करते हैं ॥१०॥
ધારણ કરે છે. પૂર્વોક્ત કૃતિઓને આ પ્રકારને અર્થ થાય છે. એ જ આત્માના અસૈતિपाहियोनी मान्यता छ. ॥८॥
वे सूत्र॥२ पूर्वात मद्वैतवादी-माना मतनु मन ४२ छ “एवमेगे” त्या -
शपथ-एवं-एवम्' के प्रमाणे 'एगे-पके डेटा यु३५ ‘त्ति-इति' ४१ मात्मा छे. मारीत 'जप्पंति-जल्पंति' ४ छे. 'मंदा-मन्दाः' ४४ मुद्धिवा तया 'आरंभनिस्सिया-आरम्भनिश्रिताः प्रातिपात विगेरे सालमा मासत मेवा 'एगे एके' मा ५३ष। 'सय-स्वयं' पाते 'पावं किच्चा-पापं कृत्वा' ५।५४ीने 'तिव्वंतीव्र' तीन खम्-दुःखम्' ५ 'नियच्छइ-नियच्छन्ति' प्राप्त ४२ छ ॥१०॥
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર: ૧