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________________ ९८६ आचारांगसूत्रे वाउछेत् व्याध्युपशमं कर्तुमभिलषेत् , एवं से सिया परो गिलागस्स' तस्य-भावभिक्षुकस्यस्यात्-यदि कदाचित् परः कश्चिद् गृहस्थः ग्लानस्य-रोगिणः साधोः चिकित्सार्थम् 'सचि त्ताणि वा कंदाणि वा मृलाणि वा' सचित्तानि-अप्रासुकानि कन्दानि वा मूलानि वा 'तयाणि वा हरियाणि वा' त्वचो वा हरितानि वा-वनस्पतिकायिकानि सचित्तहरितपत्रादीनि 'खणित्तं वा' खनित्वा वा स्त्रयम् , अन्येन वा खानयित्वा 'कड़ित्तु वा कडावित्त वा' कपित्वा वा स्वयं समाकृष्य वा, कर्षयित्वा वा-अन्येन समाकृष्य वा 'तेइच्छं आउट्टाविज' चिकित्साम् आवर्तयेत्-कर्तुकारयितुं वा अभिलषेत् तर्हि 'नो तं सायए नो तं नियमे नो ताम्-चिकित्सारूपां परक्रियाम् आस्वादयेत्-मनसा अभिलषेत्, नो वा ताम्-तथाविधां विकित्सारूपां परक्रियाम् नियमयेत्-प्रेरयेत् न अनुमोदयेदित्यर्थः मनसा वचसा कायेन वा ताम्-तथाविधदिरूप वागवलसे चिकित्सा करना चाहे अर्थात् जैन साधु के व्याधिको दूर करना चाहे तथा-'से सिया परो गिलाणस्स'-उस पूर्वोक्त जैन साधु को जोकि रोगी अर्थात् बिमार है (उसको) कोई पर-गृहस्थ श्रावक चिकित्सा के लिये-'सचित्ताणि कंदाणि वा' सचित्त अप्रासुक कंदों के एवं सचित्त 'मूलाणि वा तयाणि वा हरियाणि वा' मूलों को या त्वचाओं को या हरित पत्रों को अर्थात् वनस्पति कायिक सचित्त हरित पत्रादि को-'खणित्तु वा कहित्तु वा स्वयं खोदकर या दूसरों के द्वारा खुदवाकर या स्वयं कर्षण कर या-'कडावित्तु वा तेइच्छं आउटाविज्ज' दूसरों के द्वारा कर्षण करवा कर चिकित्सादिको करना चाहे या दूगारों के द्वारा चिकित्साकरवाना चाहे तो उस को अर्थात् गृहस्थ श्रावक के द्वारा चिकित्सा रूप परक्रिया को 'नो तं सायए' वह जैन साधु आस्वादन नहीं करे' अर्थात् गृहस्थ श्रावक के द्वारा की जाने वाली परक्रियारूप चिकित्सा को मन में अभिलाषा नहीं करें और 'नो तं नियमे वचन से उस परक्रियारूप चिकित्सा को करने के लिये अनुमोदन नहीं करें तथा काय से भी उस परक्रियारूप चिकित्सा को ४२ तथा से सिया परो गिलाणस्स' से पूर्वेति साधुनी मारय तेनी ४ १९२० श्राव थिरस। ४२३॥ 'सचित्ताणि वा कंदाणि वा' सायत्त मासु४ ४ ४ान तभ०५ 'मूलाणि वा' सथित भूणाने मथ। 'तयाणि वा' छसने सवा 'हरियाणि वा' बीसा पानी न अर्थात् १३५तिय: सथित पidiयोन 'खणित्त वा' पोते मोहन २५५41 मीन। पासे महावीर 'कढित्तु वा कड्ढावित्तु' वा' पाते पाक 424t भी पासे 63वीन ते उटै आउट्टाविज्ज' (48सा ४२॥ बारे में भी पासे (य&िसा ४२।११। धारे तो 'नो तं सायए' तेनु पर्थात् ३२५ श्राव४ ६२१ ४२वामा मापना२] ५२यि॥३५ यित्सिानी भनथी Hau ४२वी नही. तथा 'नो तं नियमे' क्यनयी है ।यथा પણ એ પરક્રિયારૂપ ચિકિત્સા કરવા અનુમોદન કરવું નહીં. તથા કાયથી પણ એ પર ક્રિય રૂ૫ ચિકિસ કરવા માટે હાથ વિગેરેના ઇસારા દ્વારા પણ સમર્થન કરવું નહીં. श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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