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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू० १ अ. १३ परक्रियानिषेधः सिया परो कायंसि' तस्य-भावसाधोः स्यात्-कदाचित् परो-गृहस्थः काये-शरीरे 'वणं वा गंडं वा अरई वा पुलयं वा भगंदलं वा' वगं वा गण्डं वा अरति वा पुलकं वा भगन्दरं वा 'लुद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा' लोभ्रेण वा-लोघद्रव्यविशेषेण (स्नो) कर्केण वा-स्नानीयामलकादि द्रव्येण, चूर्णेन वा-गोधमादि चूर्णविशेषेण (पाउडर) वर्णन वा-वर्णविशेषकु कुमादिना 'उल्लेढिज्ज वा उबलिज्ज वा' उल्लोलयेद्वा-उद्वर्तयेत्, उद्वलयेद्वा तर्हि
और अभ्यञ्जन परक्रिया विशेष होने से कर्मबन्धनोंका कारण माना जाता है इस लिये कर्मबन्धों से छुटकारापाने के लिये दीक्षा प्रव्रज्या ग्रहण करने वाले जैनमुनि महात्मा इस के लिये प्रेरणा नहीं करें अन्यथा संयम की विरधना होगी, अतः संयम पालनार्थ इस के लिये गृहस्थ को प्रेरणा नहीं करें। __ अब प्रकारान्तर से भी जैन साधु के शरीर में उत्पन्न व्रणादि का लोनादि द्रव्यों से उदवर्तनादि को गृहस्थ श्रावकों के द्वारा किये जाने पर परक्रिया विशेष होंने से निषेध करते हैं-'से सिया परो कार्यसि वणं वा' उस पूर्वोक्त जैन साधु मुनि महात्मा के काय अर्थात् शरीर में उत्पन्न व्रण अर्थात् गुमडा या फोड़ा फुन्सी वगैरह घाव को या 'गंडं वा' गण्ड अर्थात् गल गण्डादि रोगविशेष को या 'अरई वा' अरति अर्थात् अर्श (बबाशीर) को या 'पुलयं वा' पुलक नाम के व्रण विस्फोटक को या गुह्यस्थान में होने वाले अत्यन्त भयंकर 'भगंदलं वा' भगन्दर नाम के रोग को चीरफार करने के बाद शान्ति के लिये या शीघ्र ही ठोक करने के लिये या मुरझाने के लिये 'लुद्धेण वा' लोध्र नाम के द्रव्य से या 'कक्केण वा कर्क नाम के 'चुण्णेण वा' चूर्ण विशेष से या दूसरे प्रकार के चूर्ण द्रव्य से या 'वण्णेण वा' वर्ण अर्थात् कुङ्कुमादि से यदि पर गृहस्थ श्रावक કરવામાં આવતા ત્રણાદિના પ્રક્ષણ અને અત્યંજન પર કિયા વિશેષણ હોવાથી તેને કર્મ. બંધનું કારણ માનવામાં આવેલ છે તેથી કમબંધનથી છૂટવા માટે દીક્ષા ગ્રહણ કરવા વાળા સાધુએ તેમ કરવા પ્રેરણા કરવી નહીં. કારણ કે તેમ કરવાથી સંયમ વિરાધના થાય છે. તેથી સંયમના પાલન માટે તેવા પ્રકારથી ગૃહસ્થને પ્રેરણા કરવી નહીં. - હવે પ્રકારાન્તરથી સાધુના શરીરમાં થયેલ ત્રણાદિનું લેધ્ર વિગેરેથી ગૃહસ્થ દ્વારા दत्त नाहिन निषेध ४२०i ४ छ–'से सिया परो कार्यसि वणं वा' ते पूर्वरित भाव साधुना શરીરમાં થયેલ વણ અર્થાતુ ગુમડા કે ઘાને અથવા “દંતા’ ગંડ અર્થાત ગલગંડ-કંઠમાળ विगेरे । विशेष२ मथ। 'अरई वा' अति से है मश (१२स)ने 'पुलयं वा' ya४ नामना ५ (१२३८४२ मथवा 'भगंदलं वा' गुह्यस्थानमा थना। मग२ नामना रोशन था२३।७ ४ा पछी शांती था मने ही 13 ४२१। भाट भने भ34. 'लुद्धेण वा' नामना द्र०यथी प्रथ! 'कक्केण वा' ४४ नमन। यूपू विशेषथी अथवा 'चुन्नेण वा' घnaट विशेरे यूथी ५२१। 'वण्णेणं वा' ! अर्थात् ४. विगैरेयी यथा
श्री मायारागसूत्र :४