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आचारांगसूत्रे संकल्पं न कुर्यादित्यर्थः, 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा एवं जाणिज्जा' एवं-वक्ष्यमाणरीत्या जानीयात्-'तं जहा बहुमगडाणि वा बहुरहाणि वा' तद्यथा-बहुशकटानि वा बहुशकटस्थानजन्यशब्दान, बहुरथान् वा अनेकरथस्थाने प्रयुक्तशब्दान् 'बहुमिलक्खूणि वा' बहुम्लेच्छान् वा अनेकम्लेच्छस्थानशब्दान् 'बहुपत्ताणि' बहुप्रान्तरह के दयनीय शब्दों को सुनकर या देखकर या 'अन्नयराइं का तहप्पगाराई सद्दाई' ईसी प्रकार के दूसरे भी अनेक प्रकार के शब्दों को सुनने की इच्छा से 'नो अभिसंधारिजा गमणाए' उपाश्रय से बाहर किसी भी स्थान में जाने के लिये मन में संकल्प या विचार नहीं करना चाहिये क्यों कि इस प्रकार के भी अल्प वयस्क लडकी वगैरह के शब्दों को सुनने से सांसारिक विषयों में आसक्ति बढ़ जाने से संयम की विराधना होगी, इसलिये संयम पालन करने वाले जैन मुनि महात्माओं को और जैन साध्वी को इस तरह की लड़की वगैरह के करुण क्रन्दन सुनने से मोह उत्पन्न हो जायगा और संयम पालन में मन नहीं लगेगा इसलिये इस प्रकार के शब्दों को सुनने के लिये बाहर नहीं जाय।
अब फिर भी प्रकारान्तर से भी अनेकों शकटरथ वगैरह के शब्दों को भी नहीं सुनना चाहिये यह बतलाते हैं -'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा' वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु एवं भिक्षुकी साध्वी यदि एवं सहाणि जाणिज्जा' एवं वक्ष्यमाण रूपवाले शब्दों को जाने 'तं जहा बहु सगडाणि वा' जैसे कि बहु शकट अर्थात् अनेकों गाडी के स्थानों में उत्पन्न शब्दों को या 'बहुरहाणि वा' बहुरथ अर्थात् अनेकों रथों के स्थानो में उत्पन्न शब्दों को यो 'बह मिलक्खूणि वा' बहुम्लेच्छ अर्थात् अनेको म्लेच्छो के रहने के स्थानो में उत्पन्न शब्दों को याने नीच समान २० 'अन्नयराई वा तहप्पगाराइ सदाइ' मा ५४२ना मानत ५५ मने ४२ना होने सवानी २४ाथी 'नो अभिसंधारिज्जा गमणाए' उपाश्रयन બહાર કઈ પણ સ્થાનમાં જવા માટે મનમાં સંકલ્પ કે વિચાર કરવો નહીં કેમકે આ રીતના નાની કન્યા વિગેરેના શબ્દોને સાંભળવાથી સાંસારિક વિષયમાં આસક્તિ થવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે, તેથી સંયમનું પાલન કરવાવાળા મુનિઓએ કે સાધ્વીઓએ આ પ્રકારના કરૂણ આકંદન વિગેરેના શબ્દ સાંભવાથી મહ ઉત્પન્ન થવાથી સંયમ પાલનમાં મન લાગે નહીં તેથી આવા શબ્દો સાંભળવાના હેતુથી બહાર જવું નહીં.
હવે શકટ, રથ, વિગેરેના શબ્દોને ન સાંભળવા વિષે કથન કરે છે.
'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूर्वात सयभशी साधु मन सामी एवं सदाणि जाणिज्जा' ले २॥ वक्ष्यमा ४.२ना शहाने Md 'तं जह।' 'बहुसगडाणि वा' ५२४ ॥31॥ स्थानामा ५-नयन(२॥ २०ीने 24। 'बहुरहाणि वा' ५। २थापा स्थानामा ५-नयता शहाने अथवा 'बहु मिलक्खूणि वा' पाछाना २२वाना स्थानी.
श्री सागसूत्र :४