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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १सू. २ अ. १० उच्चारप्रस्रवणविधेनिरूपणम् ८८१ जातीयात् - 'आरामाणि वा उजाणाणि वा' आरामान् वा विशिष्टोद्यानरूपान्, 'उद्यानानि वा 'वणाणि वा वणसंडाणि वा' वनानि वा वनषण्डानि वा-वृहद्वनानि वा 'देवकुलाणि वा' देवकुलानि वा-यक्षादिमन्दिराणि 'सभाणि वा' सभा वा-परिषत् स्थानं वा 'पाणि वा' प्रपावा पानीयशालिका, जानीयादिति पूर्वणान्वयः 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' अन्यतरस्मिन् वा-अन्यस्मिन् वा, तथाप्रकारे-आरामोद्यानस्थाने स्थण्डिलभूमौ 'नो उच्चारस्थण्डिलभूमीमें संयमशील साधु मुनि महात्माओं को और साध्वी को मलमूत्र त्याग करने का निषेध करते हैं-'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिजा' वह पूर्वोक्त-संयमशील साधु और भिक्षुकी-साध्वी यदि ऐसा वषमाण रूपसे स्थण्डिलभूमी को जान ले कि इस स्थण्डिल भूमी के पास 'आरामाणि वा' आराम अर्थात् अत्यंत सुंदर रमणीय शीतल बगीचा है या 'उज्जाणाणि वा' उधान सुशोभित वाटिका हैं या 'वणाणि वा वणसंडोंणि वा देवकुलाणि वा' वन हैं या बडा वन है, या देवकुल अर्थातू यक्ष गंधर्व किन्नरों का मंदिर है या 'सभाणि वा सभागृह परिषदों का स्थान हैं या 'पवाणि वा' प्रपा-पानीय शाला अर्थात् प्याऊ पानिशाला है ऐसा यदि जान ले था देख ले तो 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' इस प्रकार के आराम वगैरह से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमी में साधु और साध्वी को 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिजा' मलमूत्र का त्याग नहीं करना चाहिये क्योंकि इस प्रकार के देवमन्दिरों के पास की स्थण्डिल भूमी में मलमूत्र का त्याग करने से पाप होने से आत्म संयम की विराधना होगी इसलिये संयम का पालन करनेवाले और कल्याण करनेवाले या चाहनेवाले संयमशील साध
ફરીથી યક્ષકિનર વિગેરે દેવમંદીરની પાસેની Úડિલભૂમીમાં સાધુ અને સાર્વીએ મલभूत्र त्यापन ४२वानु थन ४२ छ.-'से भिक्खू वो भिक्खुणी वा' ते सयमशील साधु सन सायी से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा' ने सेवा प्रा२नी सभीन तणे ४-मा स्थडसभूभीनी पासे 'आरामाणि वा' अत्यत सुह२ २मणीय माया छे. अथवा 'उज्जाणाणि वा' प्रधान allet छ. अथवा 'वणाणि वा' वन छ अथवा 'वणसंडाणि बा' महान छ. अथवा 'देवकुलाणि वा' हेक्स थेट यक्ष , नाना महीर छे. अथवा 'सभाणि वा' सभागृह मेरले ४ परिषहानु स्थान छे. २५२१। 'पवाणि वा' ५५ अर्थात् ५२माणा छ तम तमान सतगुवामा वामां आवे तो 'अन्नयर सि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' अथवामी सेवा प्रा२नी स्थ भूमीमा साधु सावीस 'णो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा' મલમૂત્રને ત્યાગ કરવો નહીં કેમકે આવા પ્રકારના દેવ મંદીરેની પાસેના થંડિલભૂમીમાં મલમૂત્રને ત્યાગ કરવાથી પાપ લાગવાથી સંયમ અને આત્માની વિરાધના થાય છે. તેથી સંયમનું પાલન કરવાવાળા અને આત્મ કલ્યાણની ભાવના વાળા સાધુ અને સાલવીએ આવા પ્રકારના દેવમંદિર વિગેરેના સંબંધવાળી Úડિલભૂમીમાં મલમૂત્રને ત્યાગ કર નહીં.
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श्री आया। सूत्र : ४