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________________ मममकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० १ अ. १० उच्चारप्रस्नवर्णावधेनिरूपणम् ८६९ तायाम्-व्यवधानरहितायाम् अव्यवहितायामित्यर्थः पृथिव्यां-भूमौ 'ससिणिद्धाए पुढवीए' सस्निग्धायां-क्लिानायम् आद्रीभूतायां पृथिव्याम् 'ससरक्खाए पुढवीए' सरजस्कायाम्आईसचित्तरज कणयुक्तायां पृथिव्याम् ‘मट्टियाए मक्कडाए' मृत्तिकायाम् -कर्दमरूपायांभूमौ, मर्कटायां-लूतातन्तु नालसहितायां मृत्तिकायामिति पूर्वेणान्वयः 'चित्तमंतार सिलाए' चित्तवत्यां शिलायाम्-सचित्तायां प्रस्तरशिलायामित्यर्थः 'चित्तमंताए लेलुयाए' चित्तवत्या लेष्टौमृत्तिकालोष्टरूपायां वा 'कोलावासंसिवा' घुणावासे वा 'दारुके वा' दारुके वा 'जीव पइडियंसि वा' जोवप्रतिष्ठे वा जीवयुक्त स्थाने इह 'जाव मकडासंतागयंसि' यावत्-सप्राणे सबीजे सहरिते सादके सोत्तिङ्गपनकदकमृत्तिका मर्कटासन्न वा स्थळे 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि स्थण्डिल अनन्तहित-अर्थात् शुष्क तृण धास वगैरह के व्यवधान से रहित पृथिवी पर बनाया हुआ है या 'ससिणिद्धाए पुढवीए' स्निग्धवाली 'मट्टियाए' गिलोमिटोवाली पृथिवी पर निर्मित है या 'ससरक्खाए पुढवीए' सरजस्क अर्थात् आई-गीलीमिट्टी के सचित्त रजः कण युक्त पृथिवी पर बनाया हुआ है या कर्दम कीचडवाली भूमि में बनाया हुआ है, या 'मकडाए चित्तमंताए सिलाए' मर्कटलूतातन्तु मकरे के जाल सहित मिट्ठो पर बनाया हुआ है या 'चित्तमंताए लेलुयाए' संचित्त पत्थर की शिला पर बनाया हुआ है या सचित मिट्टी के देले पर बनाया हुआ है या 'कोलावासंसि वा' कोलावास अर्थात् घुण दीमक के ऊपर बनाया हुआ है या 'दारुयंसि वा' दारुमय अर्थात् काष्ठ के ऊपर बनाया हुआ है अथवा 'जीवपइट्टियंसि वा' अर्थात् जीवयुक्त स्थानपर बनाया हुआ है अथवा 'जाय मकडासंताणगंसि वा' यावत् सप्राण अर्थात् प्राणियुक्त स्थान में बनाया हआ है, या अंकुरोत्पादक सचित्त बीजयुक्त स्थान पर बनाया हुआ है या हरे भरे तृण घास वगैरह वनस्पतिकाय जीवयुक्त प्रदेश में बनाया गया है या थंडिलं जाणिज्जा' ले यसियूभीर सेवा प्रा२यी ये है-'अगंतरहियाए पुढवीए' २२थ 33 सु४ पास तृय विगेरेना व्यवधान विनानी मान ५२ मनात छे. Aथ 'ससिणिद्धाए पुढवीए' लीना भाटीवाणी भीन ५२ मनात छे. अथवा 'ससरक्खाए पुढवीए'स२१२४ अर्थात् बीनी भाटीना सयित्त २०१४पाणी पृथ्वी ५२ मनावर छे. 'मट्टियाए' ४१ ही पाणी भूमिमा मनावर छे. अथवा 'मकडाए' भट सूततु-मर्थात् ४जीयानी Meanी भाटी ५२ मनात छे, 'चित्तमंताए सिलाए' मा सयित पत्थर नीला ५२ सनावर छ. अथवा 'चित्तमंताए लोलुए' सथित्त माटीना दानी ५२ जनाव . अथवा 'कोलावासंसि वा' दावास अर्थात धुनी ५२नी भीन ५२ सनावद छे. अथवा 'दारुयंसि वा' सानी 8५२ सनावत छ अथवा 'जीवयइद्रिय सि वा' युक्त स्थान ५२ मनावर छ. अथवा 'जाव मकडासंताणपसि वा' यावत् प्राणि युक्त स्थानमा मनावर छे. अशત્પાદક સચિત્ત બીયાવાળા સ્થાન પર બનાવેલ છે. અગર લીલા તૃણ ઘાસ વિગેરે વનસ્પતિ કાય જીવ વાળા પ્રદેશમાં બનાવેલ છે. અથવા ઠંડાપાણી વાળા સ્થાનમાં બનાવેલ છે, श्री आया। सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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