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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू. १ अ. १० उच्चारप्रस्रवणविधेनिरूपणम् ८६१ स्थण्डिलं वक्ष्यमाणरूपं जानीयात्-'अप्पंडं अप्पपाणं जाव संताणयं' अल्पाण्डम्-अण्डरहितम्, अल्पप्राणम्-प्राणिरहितम, यावत्-प्रबीजम् अहरितम् अनुदकम् उत्तिङ्गपनकदकमृत्तिकालूतातन्तुजालसन्तानरहितं दृष्ट्वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' तथापकारे अण्डादिरहिते स्थण्डिले 'उच्चारपासवणं वोसिरिजा' उच्चारप्रस्रवणम्-मलमूत्रत्यागं व्युत्सृजेत्-कुर्यात् ‘से भिक्खू
अब किस प्रकार के स्थण्डिल भूमि में साधु अने साध्वी को मूत्रपुरीषोत्सर्ग करना चाहिये यह बतलाते हैं-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु भिक्षुकी साध्वी यदि 'जं पुण थंडिलं जाणिजा' ऐसा वक्ष्यमाण रूप से स्थण्डिलभूमि को जानले कि-यह 'अप्पंडं अप्पपाणं जाव संताणयं' स्थण्डिल भूमि अल्पाण्ड अर्थात् अण्डों से युक्त नहीं है अल्प शब्द ईषदर्थक होने से लेशमात्र ही अण्डों का अस्तित्व प्रतीत होता है इसलिये नहीं की तरह होने से अभाव ही सिद्ध हो जाता है इसी नात्पर्य से अल्पाण्ड शब्द का अर्थ अण्डों से रहित होता है एवं अल्पप्राणी अर्थात् छोटे छोटे प्राणियों से भी रहित है एवं अंकुरोत्पादक बीजों से भी रहित है एवं हरे भरे तृण घास वगैरह वनस्पतिकायिक जीवों से भी सम्बद्ध नहीं है तथा शीतोदक से भी युक्त नहीं है तथा उत्तिंग छोटे छोटे तिनके पतङ्ग एकेन्द्रिघ द्वीन्द्रिय जीवों से भी सम्बद्ध नहीं है तथा पनक-फनगे कीडे मकोडे त्रस प्राणियों से भी सम्बद्ध नहीं है एवं उदक मिश्रित गिली मिट्टो रूप पृथिवीकायिक जीवों से भी सम्बद्ध नहीं है एवं मकडे के जाल परम्परा से भी सम्बद्ध नहीं है ऐसा जान कर या 'तहप्पगारंसि
હવે કેવા પ્રકારની સ્પંડિત ભૂમિમાં સાધુએ મૂત્ર પુરીષેત્સર્ગ કરે તે સૂત્રકાર બતાવે छे-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूरित संयमशील साधु मने साकी "जं पुण थंडिलं. जाणिज्जा' ले २॥ १६यमा ४२थी २a भूमिन anjle , २५ भूमि 'अप्पंड अप्पपाणं' HE५is मेट ३ ४७ मे पाजी नयी. तथा ६५ प्राणी मर्यात नाना નાના પ્રાણિથી પણ રહિત છે. અ૫ શબ્દને ઈષત્ અર્થ હોવાથી લેશમાત્ર જ ઈડાએની પ્રતીતિ થાય છે. તેથી તે નહીંવત્ હોવાથી તેને અભાવ જ સિદ્ધ થાય છે. એજ તાત્પર્યથી અહીંયાં અલ્પાંડ કે અ૫ પ્રાણ શબ્દને અર્થ ઈડાએ વિનાનિ કે પ્રાણિ विनानी से प्रभार समायो, 'जाव संताणयं' तथा मरे।५।४४ मीया विनानी छे. અને લીલેરી તૃણ ઘાસ વિગેરે વનસ્પતિ કાયિક જીના સંબંધ વાળી પણ નથી. તથા શીતદક વાળી પણ નથી તથા ઉસિંગ જીણા જીણા જી પતંગ એકેન્દ્રિય દ્વીન્દ્રિય જેના સંબંધવાળી પણ નથી તથા પનક ફનગી કીડી મકોડી વિગેરે ત્રસ પ્રાણિના સંબંધવાળી પણ નથી. પાણિથી ભરેલ ભીની માટી રૂપ પૃથ્વીકાય જીના સંબંધવાળી પણ નથી. તથા કરેલીયાના જાળ પરંપરાથી પણ યુક્ત નથી એવું જાણીને કે જેને 'तहप्पगारंसि थंडिलंसि' । प्रा२थी । विगेरे बिनानी स्थति भूमिमा 'उच्चारपासवणं
श्री सागसूत्र :४