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आचारांगसूत्रे
रावा आकर्ण्य 'निसम्म' निशम्य केनापि हेतुना मनसि निश्चित्य 'संपहावइ उस्सुयमूएण 'अप्पा' संप्रधावति उत्सुक भूतेन आत्मना तदभिमुखं गन्तु मिच्छति यत स्तत्र मम अद्भुतरूपं भोज्यं मिलिष्यति, तदाह- 'धुवा संखडि' ध्रुवा निश्चिता संखडिः वर्तते इति, लाभो भविष्यत्येवेति भावः । संखडिलामा भिप्रायेण तत्र गमनं निषेघति - 'णो संचाएइ तत्थ इयरेयरेहिं कुलेहिं' नो शक्नोति तत्र संखडिग्रामे, आहारम् आहर्तुमित्यग्रेण सम्बन्धः, इतरेतरेभ्यः संखडिरहितेभ्योऽपि कुलेभ्यः आधाकर्मादिदो परहितेभ्योऽपि भिक्षां न गृह्णीयात्, भावदुष्टत्वात्, तत्र भिक्षार्थमन्तं मां दृष्ट्वा संखडिकर्ता भिक्षां ग्रहीतुं प्रार्थयेदिति मनसि कल्पनेन अन्यकुलेभ्यो भिक्षां ग्रहीतुं न गच्छेदिति छलकपटरूपमातृस्पर्शदोषो भवेदित्याह 'सामुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवायं पडिग्गाहित्ता आहारं आहास्तिए माइद्वाणं संफासे' सामुदानिकं संखडी को 'सुच्चा' सुनकर चाहे वह पूर्व संखडी, विवाहादि शुभ निमित्तक संखडी हो या पश्चात् संखडी - मृतपितर श्राद्धादि निमित्तक ही संखडी क्यों न हो उसको 'निसम्म' जानकर यदि 'संपहावइ उस्सुयभूषण अप्पाणेणं' उत्सुक होकर उसमें जाता है या जाने के लिये मन में विचार करता है, क्यों कि उस संखडी में मुझे अपूर्व भोजन मिष्टान्नादि मिलेगा, क्यों कि वह 'धुवा संखडी' - ध्रुव निश्चित ही विशिष्ट प्रीति भोज्य रूप संखडी है इसलिये अवश्य ही, लाभ होगा, अतः, साधु और साध्वी को उसमें जाने का निषेध करते हैं- 'नो संचाएइ तत्थ इयरेयरेहिं 'कुलेहिं' तत्र उस संखडी ग्राम में, इतरेतरेभ्य कुलेभ्यः - संखडो रहित भी कुल से 'नो संचाएइ' नहीं लेनी चाहिये क्यों कि वहां भिक्षा के लिये पर्यटन करने से संखडी कर्ता उनको देखकर भिक्षा के लिये प्रार्थना करेंगे ऐसा मन में संकल्प करने से छल कपट रूप मातृ स्पर्श दोष होगा यह बतलाते हैं- 'सामुदाणियं' गृह समुदाय सम्बन्धि सामुदानिक भिक्षा जो कि 'एसियं' अधाकर्मादि सोलह दोषों से रहित भी है, एवं 'बेसि' सदोरक मुख वस्त्रिका मुहपत्ती और र जोहरणादि वेष से प्राप्त होने के होय अथवा मृत पितृता श्राद्धाहि अशुल निभित्तनी पश्चात् सौंगडी होय तेने 'निसम्म' लगीने 'उस्तुयभूएण अप्पाणे 'संपहावई' उत्सु भनवाजा थह ने तेमां लय छे જવાના મનમાં વિચાર કરે કે એ સ`ખડીમાં મને અપૂર્વ ભોજન મિષ્ટાન્નાદિ મળશે કેમ કે 'धुवा संखडी' निश्चित रीते विशेष प्रीतिलोभन ३५ साड़ी छे तेथी ४३२ साल थशे तेथी साधु साध्वीने तेमां भवानेो निषेध ठरेल . णो संचाएइ तत्थ इयरेरेहिं कुलेहिं मे सखडीवाला गभमां सडी विनाना दुणीभांथी पशु आहार લેવા ન જોઇએ. કેમ કે ભિક્ષા માટે પર્યટન કરવાથી સ`ખડી કરનાર તેને જોઇને ભિક્ષા લેવા વિનવે તેમ મનમાં સંકલ્પ કરવાથી છલ કપટ રૂપ માતૃસ્પર્શી દેાષ લાગે છે. એજ बात स्त्रार हे छे- 'सामुदाणियं एसियं वेसियं' गृह समुदाय संबंधी सामुहानिङ लिक्षा
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪