________________
૮૬
आचारांग सूत्रे
प्रसारणं करिष्यामि 'नो सविचारं ठाणं ठाइस्सामित्ति' नो वा सविचारम् - पादादिना किञ्चिद् विहरणयुक्तं स्थानम् स्थास्यामि समाश्रयिष्यामि अपितु 'वोसहकार वोसकेसमं मुलोमन हे ' व्युत्सृष्टकाः किञ्चित्कालं कायिकचेष्टारूप परिस्पन्दरहितः सन् व्युत्सृष्ट केशश्मश्रुलोमनख:अन्यकृतस्य केशश्मश्रुलोमनखोत्पाटनानुमवरहितो भूत्वा 'संनिरुद्धं वा ठाणं ठाइस्सामित्ति' सम्वनिरुद्धं यथा स्यात्तथा इन्द्रियादिनिरोधपूर्वकं स्थानं स्थास्यामि - आश्रयिष्यामि इत्येवं प्रतिज्ञाय ध्यानरूप कायोत्सर्गलीनो भूत्वा सुमेरुवनिष्प्रकम्पस्तिष्ठेत् कश्चिद् यदि केशाधुनहीं करूंगा अर्थात् हाथ पाद वगैरह को नहीं समेदूंगा और नहीं फैलाऊंगा, 'नो सविधारं ठाणं ठाइस्सामि' सविचार अर्थात् कुछ पाद वगैरह का विहरण परिभ्रमण के लिये स्थान का आश्रयण नहीं करूंगा 'तच्चा पडिमा' यह तीसरी प्रतिमारूप प्रतिज्ञा समझनी चाहिये इस तरह दूसरी प्रतिमा की अपेक्षा तीसरी प्रतिमा में पादादि का आकुश्चन प्रसारण का भी निषेध करने से विशेषता समझनी चाहिये,
अब चतुर्थ प्रतिमा का स्वरूप बतलाते हैं - ' अहावरा उत्था पडिमा - अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा' चतुर्थी प्रतिमा रूप प्रतिज्ञा का तात्पर्य यह है किमैं अचिन्त ही केवल प्रासुक भूमि फलकादि स्थान का आश्रयण करूंगा, किन्तु अन्तिम तीनों को आश्रयण नहीं करूंगा जैसे कि 'नो अबलंविज्जा कारण' काय से कुड- दिवाल वगैरह का भी अवलम्बन नहीं करूंगा और 'नो विप्परिकम्माइ' हाथ पाद वगैरह का भी आकुञ्चन और प्रसारण नहीं करूंगा, और 'नो सवियारं ठाणं ठाइसमित्ति' पाद वगैरह से बिहरण रूप परिभ्रमण भी नहीं करूंगा अर्थात् पादादि से परिभ्रमण करने के लिये भी अवग्रह के द्वारा स्थान का ग्रहण नहीं करूंगा किन्तु 'वोसडकाए' व्युत्सृष्ट काय होकर अर्थात् किञ्चित्काल कायिक चेष्टा रूप परिस्पन्द रहित होकर 'बोस केसमंसुलोमनहे' व्युत्सृष्ट केश इम १२त्रा स्थानना आश्रय उरीश नहीं या प्रमाणे आ ' तच्चा पडिमा श्री प्रतिभाરૂપ પ્રતિજ્ઞા સમજવી, ખીજી પ્રતિજ્ઞા કરતાં ત્રીજી પ્રતિમામાં પગ વિગેરેને લાંબા ટુકા કરવાના પણ નિષેધ કરવ! રૂપ વિશેષતા સમજવી.
'अहावरा त्था पडमा' हवे थोथी प्रतिभा३य प्रतिज्ञा मताववामां आवे छे.'अचित्तं खलु उत्रसज्जेज्जा' हुँ' ठेवण अथित्त आयु भूमि है इसठाहिने। माश्रय हरीश परंतु 'नोअवलंबिज्जा काएण' छेली ऐना माश्रय हरीश नहीं प्रेम है-शरीरथी लीत विगेरेन। पशु आश्रय हरीश नहीं'. 'नो विपरिकम्माइ' ' सने हाथ पण विगेरेना सांभारीश नहीं 'नो सवियारं ठाणं ठाइस्सामित्ति' मने या विगेरेथी વિહરણ રૂપ પરિભ્રમણ પણ કરીશ નહી. અર્થાત્ પગ વિગેરેથી ફરવા માટે પણ અવગ્રહ द्वारा स्थान थडुथु हरीश नहीं. परंतु 'वोसट्टकाएं' व्युत्सृष्टहाय थहने अर्थात् चित् आज अयिभ्येष्टाइप उझनयसन रहित थाने 'बोसटुके समंसुलोमनहे' सृस्ट व्यु देश
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪