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________________ आचारांगसूत्रे अबं भुत्तए वा पायए वा' अथ भिक्षुः इच्छेत्-आग्रं भोक्तुं वा, पातुं वा 'से जं पुण अंबं जाणिज्जा' स साधुः यत् पुनः आनं जानीयात्-‘स अंडं जाव ससंताणगं' साण्डम्-अण्डसहितम् यावत्-सप्राणम् स बीजं सहरितम् सोदगं सोतिङ्गपनकदकमृतिकालूतातन्तुजाल सहितम् वर्तते इत्येवं यदि जानीयात् तहिं 'तहप्पगारं अंबं अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्जा' तथाप्रकारम्-अण्डादियुक्तम् अम्रम्-आम्रफलम् अप्रासुकम् सचितं यावत् मन्यमानः नो ठहरने पर 'अह भिक्खू इच्छिज्जा अंबं भुत्तए वा पायए वा' वह साधु यदि आम्र को खाने की इच्छा करे और आम्र रस को पीने को इच्छा करे और 'से जं पुण अंबं जाणिज्जा' ऐसा वक्ष्यमाण रूप से यदि आन्न को जानले कि-यह आम्र 'सअंडं जाव ससंताणगं' अण्डों से युक्त है एवं अनेक कीडे मकोडे छोटे छोटे प्राणियों से भरा है तथा सबीज है एवं सहारित है अर्थात् अंकुर उत्पादक बीजों से युक्त है एवं हरे भरे वनस्पतिकाय जीवों से युक्त है और शीतोदक से भी व्याप्त है तथा उत्तिङ्ग-छोटे छोटे चीटी पिपरी प्राणी एवं पनक -फनगों से भी व्याप्त है तथा शीतोदक मिश्रित मिट्टी से भी युक्त है तथा लूना मकरे का तन्तुजाल परम्परा से भी भरा है ऐसा पता लग जाय तो 'तहप्पगारं अंबं अफासुयं जाव' इस प्रकार के अण्डादि युक्त आम्र को अप्रासुक सचित्त समझकर वह साधु और साध्वी उस अण्डादि युक्त आम्र को 'णो पडि गहिज्जा' ग्रहण नहीं करे क्योंकि इस प्रकार के अण्डादि युक्त आम्र को सचित्त होने से ग्रहण करने पर जोवहिंसा होने से संयम की विराधना होगी इस लिये संयम का पालन करने वाले साधु और साध्वी इस तरह के अण्डादि युक्त आम्र को सचित्त होने से ग्रहण नहीं करे क्योंकि संयम का अच्छी तरह सन २२वा भ्यान त साधुने 'अह भिक्खू इच्छिज्जा अंबं भुत्तए वा पायए वा' सामाना । वानी ४२छ। थाय भने शन। २४ पीवानी ४२छ। थाय अने से जं पुण अंबं जाणिज्जा' से मामाने वक्ष्यमा रीते से 'सअंडं जाव ससंताणगं' मा १ અંડાઓથી યુક્ત છે, તથા અનેક કીડીમકડા તથા નાના નાના પ્રાણિયથી ભરેલ છે, સબીજ છે તથા લીલેવરીથી યુક્ત છે અર્થાત્ અંકુરોત્પાદક બીજવાળી છે. તથા હરિતકાય છથી યુક્ત છે. તથા શતકથી પણ વ્યાપ્ત છે તથા જીણું પ્રાણી અને પનક-ફનગાઓથી પણ વ્યાપ્ત છે. તથા શીતદક મિશ્રિત માટીથી પણ યુક્ત છે. તથા લૂતા મકરાના ततु ५२ ५२॥श्री ५ मा छ, म तवामा मावे तो 'तहप्पगार अंबं अफासुय जाव नो पडिगाहिज्जा' मा प्रमाणे ना हि वाणी शन ५] ४२वी नही भ3આ રીતના ઇંડાદિ વાળી કેરી સચિત્ત હોવાથી તેને ગ્રહણ કરવાથી જીવહિંસા થવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે. તેથી સંયમનું પાલન કરવાવાળા સાધુ અને સાવીએ આ પ્રકારના અંડાદિ વાળી કેરી સચિત્ત હોવાથી ગ્રહણ કરવી નહીં. કેમ કે સંયમનું સારી श्री.माया सूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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