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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ ९० ३ सप्तम अवग्रहप्रतिमाध्ययननिरूपणम् ७९१ 'गाहावइकुलेसु घा' गृहपतिकुलेषु चा-गृहपति गृहेषु उपाश्रयेषु वा 'परियावसथेसु बा' पर्या वसथेषु वा-अन्यतीर्थिकदण्डि प्रभृति साधुमठेषु 'जाव' यावत्--अनुविचिन्त्य गृहस्वामि प्रभृतिभ्यः अवग्रहं याचित्वा यथावग्रहं पूर्वोकरीत्या अनुज्ञापनानन्तरम् किं कुर्यादिति दर्शयितुं प्ररूपयन्नाइ-से किं पुण तत्थुग्गहंसि एवोग्गहियंसि' स-साधुः किम् पुनः तत्र-आगन्त्र. गारादिषु धर्मशालादिरूपेषु गृहस्वामिना अधिष्ठात्रा वा अवग्रहे अवगृहीते सति किं कुर्यादित्याह-जे तत्थ गाहावईण वा' तत्र येषां गृहपतीनां वा 'गाहावइपुत्ताण व ' गृहपतिपुत्राणां वा 'सूई वा' सूची वा 'पिप्पलए वा' पिपलकं वा-कर्तरिकारूपं (कैंची) 'कण्णसोहणए या' कर्णशोधनकं वा-कर्णमलनिकासकयन्त्रविशेषः 'नहच्छेयणए वा नखच्छेदनकं या-नख कर्वकयन्त्रं (नहरनी) वा स्यात् 'तं अपणो एगस्स अट्टाए पाडिहारियं जाइत्ता' तत्-सूच्यादि. कम् आत्मनः एकस्य-स्वस्यैव अर्थाय-प्रयोजनाय प्रातिहारिकम्-पुन: प्रत्यर्पणीयरूपेण भिक्षुको साध्वी अतिथिशालाओं में या उद्यानशालाओं में या गृहस्थ श्रावकके उपाश्रयों में या अन्यतीधिक साधु महात्मा दण्डी वगैरह के मठों में यावत् स्वामी या अधिष्ठाता से 'से किं पुण तत्थुग्गहंसि एवोग्गहियंसि' ठहरने के लिये अनुमति लेकर रहने पर 'जे तत्थ गाहावइ वा' जो वहां गृहपति गृहस्थ श्रावकों की या 'गाहावइ पुत्ताण वा' गृहस्थ पुत्रों की सूई बा पिप्पलए वा कण्णसोहणए वा मूई या कैंची या कान के मल को निकालने का साधन विशेष यन्त्र या 'नहच्छेयणए वा' नहरनी वगैरह हो तो 'तं अप्पणो एगस्स अट्ठाए' उन मूई कैंची कानखोजर नहरनी वगेरह को केवल अपने एक के लिये ही 'पाडिहारियं जाइत्ता' फिर वापस करदेने की भावना से ग्रहण कर उन से अपना कार्य सम्पन्न कर वापस कर देना चाहिये किन्तु 'नो अन्नमन्नस्स दिज्ज वा अणुपइज्ज वा' एकवार या अनेक वार अपने लिये मांग कर ली हुइ दूसरे साधु को नहीं देना चाहिये ते पूरित सयभार साधु भने सावी 'आगंतागारेसु वा, मतिथि शाम मथा 'आरामागारेसु वा' धान शामा अथवा 'गाहावइकुलेसु वा' पति ७२५ श्रापना उपाश्रयोमा । 'परियावसथेसु वा' अन्यतीथि साधुमे। 1 विशेरेना महाभां 'जाव' यावत 'से किं पुण तत्थुग्गहसि एवोग्गहियंसि' ते स्थानना स्वाभीड़ी१८ ता पांसे थी २३१। भाट समति बन २७ त्यारे 'जे तत्थ गाहावईण वा' पति २५ श्रा१४ 'गाहावइपुत्ताण वा' गडपतिना yोनी 'सुई वा' साय डाय अथ। 'पिप्पलए वा' तर डाय 2424। 'कण्णसोहणए वा' न मातरणी डाय 24241 'नहच्छेयणए वा' नम ॥५वानी न२७ डाय 'तं अपणो एगस्स अट्टाए पडिहारियं जाइत्ता से સેઈ વિગેરે સાધને કેવળ પિતાના ઉપગ માટે જ પાછા આપવાની ભાવનાથી લઈને तनाथी पोतानु ५ येथी पाछ। मापी हा 'नो अन्नमन्नस्स दिज्ज वा' परंतु पोताना उपयोग माटे यायना इशने सार अन्य साधुन मे पार म२१ 'अणुपइज्ज बा' श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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