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आचारांगसूत्रे तथाप्रकारम् शीतोदकयुक्तम्, पतद्ग्रहम्-पात्रम् 'परहत्थंसि वा' परहस्ते वा-गृहस्थहस्ते 'परपायसि वा' परपात्रे वा-गृहस्थपात्रे इत्यर्थः 'अफासुयं अणेसणिज्जं जाव नो पडिगाहिज्जा' अप्रासुकम्-सचित्तम् अनेषणीयम्-आधाकर्मादिदोषयुक्तं यावद्-मन्यमानः साधुः नो प्रतिगृह्णीयात् 'तदग्रहणे अकायिकजीव हिंसासंभवेन संयमविराधना स्यात 'से य आहच्च पडिग्गहिएसिया' तच्च शीतोदकं शीतोदकयुक्तपात्रं वा यदि आहत्य-कदाचित प्रतिगृहीतं स्यात् तर्हि 'खिप्पामेव उदगंसि साहरिजा' क्षिप्रमेव-शीघ्रमेव उदके-क्वचिद् जलाशये सदुदकं संहरेत्-दातुरुदकपात्रे प्रक्षिपेत् ‘से पडिग्गामायाए पाणं परिहविज्जा' तत् पतद्ग्रहम् पात्रम् आदाय गृहीत्वा पान-पानकं परिष्ठापयेत् कूपादौ प्रक्षिपेत् वा, 'ससिणिदाए वा भूमीए नियमिज्जा' सस्निग्धायां वा भूमौ स्निग्धभूमौ छायागर्तादौ नियमेतनिक्षिपेत्, ‘से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'उदउल्लं वा ससिणिद्धं वा कर देवे तो 'तहप्पगारं पडिग्गहगं' उस प्रकार के शोतोदक युक्त पात्र को 'परहत्थंसि वा पर पायंसि वा' गृहस्थ के हाथ में या गृहस्थ के पात्र में 'अफासुयंअणेसणिज्जं जाव' अप्रासुक-सचित्त और अनेषणीय-आधाकर्मादि दोषों से युक्त यावत् समझते हुए साधु उसको 'नो पडिगाहिज्जा' नहीं ग्रहण करे क्योंकि 'से य आहच्च पडिग्गहिए सिया' उस शीतोदक युक्त पात्र को ग्रहण करने से अप्कायिक जीव को हिंसाका संभव होने से संयमकी विराधना होगी इसलिये उस शीतोदक युक्त पात्र को नहीं लेना चाहिये, यदि कदाचित् उस शीतोदक युक्तपात्र को अनजान में ग्रहण करले तो 'खि पामेव उदगंसि साहरिज्जा' शीघ्र ही कहीं पर जलाशय में उस शीतोदक वाले पात्र को या शीतोदक को रख दे या दाता के ही पात्र में स्थापित कर दे और 'से पडिग्गहमायाए पाणं परिविज्जा' उस पात्र को लेकर पानक अर्थात् जल को किसी कूप वगैरह में रखदे या 'ससिणिद्वाए वा भूमीए नियमिज्जा' स्निग्ध भूमि में अथवा छाया गर्तादि में याने खड्डा में रख दे स्वयं नहीं पिवे, ‘से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा
१२0 31 पाणी व पात्रने ‘परहत्थंसि वा परपायसि वा' स्यनयमा उत्थना पत्रमा 'अफासुयं अणेसणिज्जं जाव' मासु-सायत्त मन मनेषणीय माधा. माह होषाथी युक्त यावत् समझने 'नो पडिगाहिज्जा' साधु तेन ५७ ४२१। नडी. કેમ કે-એ ઠંડા પાણીવાળા પાત્રને ગ્રહણ કરવાથી અકાયિક જીવની હિંસાને સંભવ હોવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે. તેથી એ ઠંડા પાણીવાળા પાત્રને લેવા નહીં. જે हाय ‘से य आहच्च पडिगहिए सिया' ये 1 पाणी पात्र ७५ ४ 'खिप्पामेव उदगंसि साहरिज्जा' त२d or ५ सयम से 1 पाणी पात्रने
। पाथीने सभी मया दाताना पात्रमा रामी हेस. 'से पडिग्गहमायाए पाणं परिदृविज्जा' थे पात्रने सनसन । विगैरेभा रामी हे. अथ। 'ससिणिद्वाए या भूमीए नियमिज्जा स्निग्ध भूमिमा म मा विगैरेभा भी पाते
श्री मायारागसूत्र :४