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________________ ममैप्रकाशिका टीका श्रुतरकंध २ उ. १ सू. १ षष्ठ' पात्रैषणाध्ययननिरूपणम् ५५ पर्यायेणोपभुज्यमानं पात्रं याचेत, तदाह-'तहप्पगारं पायं यं वा जाव पडिगाहिज्जा' तथाप्रकारम्-तथाविधम्-स्वाङ्गिक वैजयन्तिकं वा पात्रं स्वयं वा साधुः यावद् याचेत, परो बा गृहस्थः साधवे दद्यात्, तच्च पात्रम् प्रासुकम् अचित्तम्, एषणीयम्-आधाकर्मादिदोषरहितं मन्यमानः प्रतिगृहोयात् 'तच्चा पडिमा' इति तृतीया प्रतिमा-पात्रषणा रूपा प्रतिज्ञा बोध्या, अथ चतुर्थी पात्रैषणामाह-'अहावरा चउत्था पडिमा' अथ-अनन्तरम्, अपरा-अन्या चतुर्थी प्रतिमा-पात्रैषणारूपा प्रतिज्ञाप्ररूप्यते-‘से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'उझियधम्मियं जाएज्जा' उज्झितधार्मिकम्-अन्यानभीप्सितम् पात्रं याचेत 'जावऽन्ने जान कर उस पात्र की याचना करनी चाहिये इसी आशय से कहते हैं कि 'तहप्पगारं पायं सयं वा जाव पडिगाहिज्जा' इस प्रकार के स्वाङ्गिक तथा वैजयन्तिक पात्र को साधु स्वयं याचना करे या गृहस्थ श्रावक ही उस साधु को देवे और यावत्-इस प्रकार के स्वाङ्गिक तथा वैजयन्तिक पात्र को साधु प्रासुक-अचित्त तथा एषणीय-आधाकर्मादि षोडश दोषों से रहित समझते हुए ग्रहण करले 'तच्चा पडिमा' इस प्रकार तृतीया प्रतिमा पात्रैषणा रूप प्रतिज्ञा समझनी चहिये, अब चतुर्थ पात्रषणारूप प्रतिमा को बतलाते हैं-'अहावरा चउत्था पडिमा से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा' अथ-तृतीय पात्रैषणा रूप प्रतिमा के निरूपण के बाद अब चतुर्थी पात्रैषणा रूप प्रतिमाका निरूपण करते हैं-वह पूर्वोक्त-संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी 'उज्झियधम्मियं जाएजा' जिस पात्र को दूसरे कोई नहीं चाहते हो इस तरह के उज्झित धार्मिक अर्थात् अन्य अनभीप्सित पात्र की याचना करनी चाहिये और यावतू एवंविध अर्थात् जिस पात्र को दूसरा कोई भी नहीं चाहता हो इस प्रकार के पात्र को प्रासुक अचित्त और एषणीयઉપભુજ્યમાન છે. એમ જાણુને એ પાત્રની યાચના કરવી. એજ આશયથી સૂત્રકાર કહે छे-'तहप्पगारं पायौं सय वा जाव' 21 प्रा२ना सांगति तथा वैयति: पात्रोन साधुमे २१५ यायना ४२वी. अथवा गृहस्थ-श्राप ४ से साधुने मा५३॥ मन यावत् 'पडिगा. हिज्जा तच्चा पडिमा' मा ४२॥ सांगति तथ: वैयनित पात्रने साधु सासुઅચિત્ત તથા એષણીય-આધાકર્માદિ સોળ દેથી રહિત સમજીને ગ્રહણ કરી લેવા. આ રીતે ત્રીજી પ્રતિમા પાવૈષણા રૂપ પ્રતિજ્ઞા સમજવી. हर याथी पात्रष! ३५प्रतिमा वामां आवे . 'अहावरा चउत्था पडिमा' र ત્રીજી પારૈષણ રૂ૫ પ્રતિમાનું નિરૂપણ કરીને આ થેથી પારૈષણા રૂપ પ્રતિમાનું નિરૂપણ ४२वामां आवे छे. 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूर्वात सयमशील साधु सने सोचा 'उझियधम्मिय आइज्जा' रे पात्रने यी देव। २छता न य से ४२॥ ઉજકત ધાર્મિક એટલેકે બીજા કોઈ ન ઇચછે એવા પાત્રની સાધુએ યાચના કરવી. અને યાવત श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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