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आचारांगसूत्रे 'पंचाहेण वा' पश्चाहेन वा-'विपवसिय विप्पवसिय' विप्रोड्य विप्रोष्य-एकाहादि यावत् पञ्चाहपर्यन्तम् उषित्वा 'उवागच्छिस्सामि' उपागमिष्यामि, अथ च 'अवियाई एयं ममेव सिया' अपिच एतत् प्रातिहारिकरूपं वस्त्रं मम एव याचकस्य साधोः स्यात्-भवेदित्येवं बुझ्या यदि कस्मादपि साधोः सकाशात् छलकपटेन वस्त्रं गृह्णाति तर्हि 'माइट्टाणं संफासे' मातृस्थानम्-छलकपटादिरूपमायात्मकमातृस्थानदोषं संस्पृशेत्, तस्मात् 'नो एवं करिजा' नो एवम्-उक्तरीत्या छलकपटादिना प्रातिहारिकरूपेण वस्त्रग्रहणं कुर्यादिति ॥ सू० १०॥
मूलम्-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा नो वण्णमंताई वत्थाई विवण्णाई करिजा, विवण्णाइं न वण्णमंताई करिजा, अन्नं वा वत्थं लभिस्सामि तिकट्ठ नो अन्नमन्नस्स दिज्जा, नो पामिच्चं कुजा, नो वत्थेण वत्थपरिणामं कुज्जा नो परं एउवसंकमित्तु एवं वदेजा आउसंतो! समणा ! समभिकंखसि मे वत्थधारित्तए वा परिहरित्तए वा ? थिरं वा संतं नो पलिच्छिदिय पलिच्छिदिय परिदृविज्जा, जहा मेयं वत्थवा तियाहेण वा एक दिन या दो दिन या तीन दिन या 'चउहेण वा पंचाहेण चा 'विप्पसिय विप्पवसिय' चार दिन अथवा पांच दिन तक उस वस्त्र को दसरे गाममें जाकर उपभोग करके 'उवागच्छिस्सामि' फिर वापस आजाउंगा और 'अवियाई एयं ममेव सिया' यह वस्त्र भी मुझे ही मिल जायगा इस प्रकार के छल कपट की बुद्धि से वस्त्र का ग्रहण करता है तो 'माइहाणं संफासे' उस साधु को मातृस्थान दोष लगेगा अर्थात् छल कपट करके वस्त्र ग्रहण करने से छलकपट माया रूप मातृस्थान दोष लगता है इसलिये छलकपट करके साधु को उक्तरीति से 'णो एवं करेज्जा' प्रातिहारिक वस्त्र ग्रहण नहीं करना चाहिये क्योंकि संयम पालन करना साधु का परम कर्तव्य माना जाता है इसलिये छल कपट करने से संयम और आत्मा की विराधना होती है इसलिये साधु को छल कपट नहीं करना चाहिये ॥१०॥ साधुनी पासेयी पर धन ‘एगाहेण वा दुआहेण वा तियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा'
मे ६१४ मे हिवस त्र या विस २ पांय हिवस ५-त विप्पवसिय पिप्पलसिय भीमा ४ ख ५३१ शकते ५७ ‘उवागच्छिस्सामि' छे! यी २५२
मे १ख ५४ 'अवियाई एयंममेव सिया' भीतने न आपतi भने भणी शे. या शते २१४५टना विद्यार्थी परखने पहुए २ तो ते साधुने 'माइदाणं संफासे' भातृस्थान होष साणे छे. तेथी 'नो एवं करेज्जा' ७१४५८ उरी साधु माशते प्राति४ि १ લેવા નહીં. કેમ કે-સંયમનું પાલન કરવું એજ સાધુનું પરમ કર્તવ્ય માનવામાં આવે છે. તેથી છળ કપટ કરવાથી સંયમ અને આત્માની વિરાધના થાય છે. તેથી સાધુએ છળકપટ કરવા નહીં સૂ. ૧૦ છે
श्री आया। सूत्र : ४