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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कघ २ उ. २ सू० ९ पञ्चमं वस्त्रेषणाध्ययननिरूपणम् ७२३ गृहपतिकुलं प्रविशेद्वा 'एवं बहिय विहारभूमिं वा वियारभूमिं वा' एवम् उक्तरीत्या बहि:उपाश्रयाद् बहिः प्रदेशे विहारभूमिं स्वाध्यायभूमिम् विचाभूमिं वा मूत्रपुरीषोत्सर्गभूमि स्थण्डिलरूपाम् वा 'गामाणुगामं वा' ग्रामानुग्रामं वा - ग्रामाद् ग्रामान्तरं वा दूयेत गच्छेत् सर्वे चीरमादायेति शेषः 'अह पुण एवं जाणिज्जा' अथ पुनरेवं- वक्ष्यमाणरीत्या जानीयात् 'तिब्ब देसि वा वा वासमाणं पेहाए' तीव्रदेश्याम् वा न्यूनाधिकां वर्षा वर्षन्तीं प्रेक्ष्य अवलोक्य जहा पिंडेसणाए' यथा पिण्डैषणायामुक्तं तथैवात्रापि वक्तव्यम् 'नवरं सव्वं चीवरमायाए' नवरम् पिण्डैषणापेक्षया वस्त्रैषणायां विशेषस्तु सर्व चीवरमादाय गच्छेत्, तथा चपिण्डैषणायां सर्वमुप धिमादाय गच्छेदित्युक्तम्, वस्त्रैषणायां तु सर्वम् वस्त्रमादायगच्छेत् इति विशेषो बोध्यः ॥ ०९ ॥ करे अथवा नीकले 'एवं बहिय विहारभूमि वा' इसी तरह बाहर प्रदेश में भी विहार भूमि - अर्थात् स्वाध्याय के लिये एवं 'विद्यारभूमिं वा' विचार भूमि अर्थात् शौच - मलमूत्र परित्याग करने के लिये तथा 'गामाणुगामं वा दूइज्जिज्जा' एक ग्राम से दूसरे ग्राम भी सभी वस्त्रादि को लेकर ही जाय, अन्यथा संयम की विराधना होगी, 'अह पुण एवं जाणिज्जा' अथ-यदि वह साधु और साध्वी ऐसा वक्ष्यमाणरूप से जान लेकि 'तिब्वदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए' अत्यन्त अधिक वर्षा हो रही है ऐसा देख ले या जान ले तो 'जहा पिंडेसणाए' जिस तरह पिण्डेषणा में कहा है उसी तरह यहाँ पर वस्त्रेषणा में भी समझ लेना चाहिये अर्थात् जैसे पिंडेपणा में सभी उपधि लेकर एक ग्राम से दूसरा ग्राम जाय, वैसे ही यहां पर 'नवरं सव्वं चीवरमायाए ' यही विशेषता है कि वस्त्रैषणा में सभी चीवर वस्त्र को लेकर ही स्वाध्याय भूमि में या उपाश्रय से विचार fभूमि में या एक ग्राम से दूसरे ग्राम में जाय, अन्य था संयम की १२वी. अथवा मडार नीsng'. 'एवं बद्दिय विहारभूमिं वा, वियारभूमिं वा प्रभा બહારના પ્રદેશમાં પણ વિહારભૂમિ અર્થાત સ્વાધ્યાય ભૂમિમાં જવા અથવા વિચારભૂમિ अर्थात् भभूत्र त्याग व तांडे 'गामाणुगामं वा दूइज्जिज्जा' तथा मे आमथी जीरे ગામ જતાં સઘળા વડ્યા સાથે લઇને જ જવુ' અન્યથા સંયમનીવિરાધના થાય છે. દ पुण एवं जाणिज्जा' ने ते साधु भने साध्वीना लागुवामां मेवु भावे 'तिव्वदेसियं वा वासं वसमाणं पेहाए' भूम वधारे वरसाह पडी रहे छे. तेभ लेहा से हैं भागीखेो तो 'जहा पिंडेसणाएं' ने प्रमाणे पिंडेषां वामां आवे छे, खेन प्रमाणे मडीया વસ્ત્રષણામાં પણ કથન સમજી લેવુ', અર્થાત્ જેમ પિડૈષણામાં બધી ઉપધિ લઇને એક ગામથી બીજે ગામ જવા કહેલ છે એજ પ્રમાણે અહીંયાં પણ તેમ સમજવું. પરંતુ 'नवरं सव्वं चीरमायाए' अडींयां मे विशेषता छे वस्त्रषणाभां सघना वस्त्र बहने સ્વાધ્યાય ભૂમિમાં અગર ઉપાશ્રયમાં કે બહાર વિચારભૂમિમાં અથવા એક ગામથી બીજે ગામ જવું. તેમ ન કરવાથી સયમની વિરાધના થાય છે. તેથી સયમ પાલન માટે શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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