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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. २ सू० ६ चतुर्थ भाषाजातमध्ययननिरूपणम् ६४७ 'तं जहा-गाओ दुशाओत्ति वा' गावः एता दोह्याः-दोहनयोग्याः दोहनकालो वाऽयं वर्तते इति, एवं 'दम्मेत्ति वा गोरहत्ति वा दम्यः-दमनयोग्योऽयं गीरिति वा गोरहः युवाऽयं गौः वृषभ इति वा 'वाहिमत्ति वा रहजोग्गत्ति वा वाद्यः वाहनयोग्योऽयं वलीवदरूपो गौ रिति वा, रथ योग्य:-रथवहनयोग्योऽयं गौरिति वा इत्येवं रीत्या न वदेदित्याह-'एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव नो भासिज्जा' एतत्प्रकाराम्-दोह्या गौरित्यादि शब्दरूपां भाषा सावधाम्-सगर्वाम् यावत्-सक्रियां कटुकां कर्कशाम् परुषाम् प्राण्युपतापिनीम् भूतोपघातिनीम् पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु एवं साध्वी अनेक प्रकार की गायों को देख कर 'णो एवं वहज्जा' ऐसा वक्ष्यमाणरूप से नहीं बोले 'तं जहा जैसे की 'गाओ दुज्झाओ तिवा' ये गाय दूहने के योग्य है अथवा यह दृहने का समय है ऐसा नहीं बोलना चाहिये, इसी प्रकार 'दम्मेत्तिवा' यह बैल दमन करने योग्य है एवं यह 'वाहिमत्तिवा' बैल युवा है अथवा यह बैल वाहन योग्य है अर्थात् बलीवर्द है एवं 'रहजोग्गत्ति वा' रथ वहन योग्य है अर्थात् रथ को वहन कर ने वाला हो सकता है इस प्रकार भी साधु और साध्वी को नहीं बोलना चाहिये, क्योंकि 'एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव' इस प्रकार की भाषा अर्थात् 'दोह्या गौः' इत्यादि शब्दरूप भाषा सावध सगहर्य निंद्य तथा अनर्थ दण्ड प्रवृत्ति जनकात्मक सक्रिय एवं कटु तथा कर्कशा एवं परुषा कठोर एवं प्राणियों को उपताप देने वाली तथा भूतों का उपघात करने वाली मानी जाती है इस लिये 'नो भासिजा' इस प्रकार का दोह्या गौः इत्यादि भाषा को मन से विचार कर नहीं बोलना चाहिये क्योंकि ऐसे बोलने से गाय का दूध निचोरा जासकता है और उस गाय के बच्चे को दूध नहीं मिलने से प्राणी विशेषरूप उस गाय के बच्चे को उपताप तथा उपघात होने से साधु को संयम को विराधना होगी, इसी प्रकार यह बैल वहन करने योग्य है' इत्यादि भाषा १क्ष्यमा शत मत नही 'तं जहा' रम है 'गाओ दुझाओत्ति वा' 20 गाय होपा योग्य छे. अथवा मा मायने हावाने समय छ तेम हनही तथा 'दम्मेत्ति वा' माम भव। योग्य छे. तया ॥ ५॥ युवान छे. त५॥ वाहिमत्ति वा' २५॥ ३॥ वाहने 34। योग्य छ अर्थात् 'रहजोग्गत्ति वा' २थे साय४ २६ गये। छ. मेरीते ५ साधु भने साध्वी मोस नही. भ'एयप्पगारं भासं' मा ४१२नी भाषा अर्थात् 'दोह्यागौः' विगैरे १४४३५ भाषा 'सावज्जं जाव' सावध समय नि तथा અનર્થ દંડ પ્રવૃત્તિ જનક, સક્રિય એવં કટુ તથા કર્કશ અને પરૂષ કઠોર અને પ્રાણિને पता५ ४२नारी तथा भूतीपातिनी भानामां आवे छे. तेथी दोह्या गौः' विगैरे प्रा२नी ભાષાને મનથી વિચાર કરીને બેલવી નહીં કેમ કે એવું બોલવાથી ગાયનું દૂધ દેવામાં આવે છે અને તે ગાયના બચ્ચાને ન મળવાથી પ્રાણિ વિશેષરૂપ એ ગાયના બીચાને श्री मायारागसूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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