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आचारांगसूत्रे
छिन्ननासिकं मनुष्यं नातिकाच्छिन्नः छिन्ननासिक इति, कर्णच्छिन्नं छिन्नकर्ण मनुष्यं कर्णच्छिन्नः छिनकर्ण इति शब्देन च न भाषेतेत्यन्वयः एवम् 'उट्ठडिन्नेति वा' ओष्ठच्छिन्नम् छिन्नोष्ठं मनुष्यम् ओष्ठछिन्नः छिन्नौष्ठ इति शब्देन न भाषेत, तथा भाषणे स कुप्येत् तदुपसंहरन्नाह - 'जे यावन्ने तहप्पगारा एयप्पगाराहिं भासाहि बुझ्या बुझ्या कुप्पंति माणवा' ये चाप्यन्ये तथाप्रकाराः काशश्वासादिरोगयुक्ताः कुब्जत्व काणत्वखञ्जत्वादि होनाङ्गः पुरुषाः एतत्प्रकाराभिः एवंविधाभिः भाषाभिः तत्तच्छब्दैः उक्ताः उक्ताः पौनःपुन्येन भाषिताः सम्बोधिता वा मानवाः मनुष्याः कुप्यन्ति तथा च कलहेन संयमविराधना स्यात्, तरम द 'ते या पगाराहिं भासाहि अभिकख नो भासिज्जा' तांश्चापि कारश्व सादिरोगयुक्तान्
पुरुष को छिन्नकर्ण शब्द से एवं 'उछिन्ने तिवा' छिन्न ओष्ठ पुरुष को छिन्न ओष्ठ शब्द से नहीं बोलना चाहिये क्योंकि यह सत्य होने पर भी कटु होने से वे सभी मधु प्रमेही वगैरह पुरुष कुपित हो जायेंगे और झगरा कलहादि साधु के साथ करेंगे और झगरा कलहादि साधु के साथ करेंगे इसलिये संयम की विराधना होगी, अतः साधु और साध्वी को इस प्रकार के कटु शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिये, अब उपर्युक्त विषयों का उपसंहार करते हुए कहते हैं कि 'जे यावन्ने तहपगारा' जो भी इसी प्रकार के दूसरे काश श्वासादि रोग युक्त हैं और कुब्जत्व काणत्व खञ्जत्वादि रोगों से युक्त हीन अंगवाले पुरुष हैं उन सभी काशश्वासादि रोगियों को इस प्रकार के काश श्वासादि कटु शब्दों से नहीं बोलना चाहिये क्योंकि 'एयप्पगाराहिं भासाहि बुझ्या बुझ्या कुप्पंतिमा
वा' वे सभी काश श्वास रोग वाले पुरुष एवं कुब्ज खञ्ज काणे लुल्हे पुरुष इस तरह के कटु शब्द को सुनकर गुस्सा करेंगे और साधु से झगरा करेंगे और
'छान उटी ' से शहथी तथा 'उट्ठच्छिन्नेति वा उपास ३षने 'टी' सेवा શબ્દથી ખેલાવવા ન જોઈએ. કેમ કે આ કથન સત્ય હૈાવા છતાં કટુ હાવાથી તે બધા મધુ પ્રમેહી વિગેરે પુરૂષ ક્રોધ યુક્ત થશે. અને ઝઘડા કકાસ સાધુની સાથે કરે તેથી સંયમ વિરાધના થાય છે. જેથી સાધુ અને સાધ્વીએ આવા પ્રકારના કડવા શબ્દના પ્રયાગ २। नहीं. वे उप उथन! उपसंहार र छे - 'जे यावन्ने तहप्पगारा' જે કાઇ આવા પ્રકારના ખીજા કાસ શ્વાસાદિ રોગ યુક્ત હોય અને કુખડા કાણા વગેરે रोगथी युक्त अंगनामा पु३ष होय ते मधा अस श्वासादि रोगीयोने 'एयप्पगाराहिं भासा ' આવા પ્રકારના કાસ શ્વાસાહિઁ કટુ શબ્દેથી ખેલાવવા નહી' કેમ કે એ કાસ શ્વાસાहि शगवाजा पुरषो तथा डुम्न, संगडा, आशा, तुझा विगेरे डीनांगी ५३ष 'बुइया बुझ्या कुपंति माणवा' मा प्रहारथी मोक्षायेा उटु शहने सांलजीने ोषित थशे तथा साधु साथै उघडे। १२शे तेथी संयमनी विराधना थशे तेथी भावी रीते 'तेया वि तहप्पगाराहि
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪