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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. २ स ० २१ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् ५१ त्सवेषु 'चेश्यमहेसु वा' चैत्यमहेषु वा जनसमुदाय ज्ञानविकासनिमित्तक महोत्सवेषु 'रुक्खमहेसु वा' वृक्षमहेषु वा वृक्षविशेषक्ट पिप्पलादि पूजनमहोत्सवेषु 'गिरिमहेसु वा' गिरिमहेषु वा पर्वतविशेष पर्वनिमित्तकमहोत्सवेषु 'दरिमहेसु वा दरीमहेषु वा गुफाविशेषकन्दरा पूजना. दिमहोत्सवेषु 'अगडमहेसु वा' अवटमहेषु वा अवट: कूप: तस्य खननोत्सर्गयागादिमहोत्सवेषु 'तलागमहेसु वा तडागमहेषु वा महारुद विशेष तडागोत्सर्गादिमहोत्सवेषु 'दहमहेसु वा' ह्रदमहेषु वा, अल्प जलाशयोत्सर्गादि महोत्सवेषु इत्यर्थः 'नईमहेसु वा नदीमहेषु वा गङ्गादि. नदीविशेषस्नानादि महोत्सवेषु 'सरमहेसु वा' सरोमहेषु वा, सरोवरविशेषमहोत्सवेषु 'साग रमहेसु वा' सागरमहेषु वा 'आगरमहेसु वा' आकरमहेषु वा सुवर्णादिखनिविशेष पूजनादिहेसुवा' नागमहेषुबा-नागनिमित्तक महोत्सव में या 'थूभ महेसुबा' स्तूप महोत्सब में अर्थात् स्तम्भ विशेषरूप यूपपूजन महोत्सव में या 'चेइयमहेसु वा' चैत्यमहेषु वा-जनसमुदाय में स्व-पर एवं जड चैतन्य का यथार्थ ज्ञान के विकास निमित्तक महोत्सव में 'रुक्ख महेसुवा' वृक्षमहेषुवा वृक्षारोपण वगैरह अथवा 'गिरिमहेसु वा' पर्वत निमित्तक विशेष पर्व रूप महोत्सव में या 'दरिमहेसु वा' दरिकन्दरा गुफा विशेष निमित्तक महोत्सव में अथवा 'अगड महेसुवा' "अवटमहेषु वा कूपखनन 'खोदना' निमितक महोत्सव में या 'तडाग महेसुवा' तडागमहेषुवा महाहूद तडागोत्सर्गादि तालावउत्सर्ग निमित्तक महोत्सव में यहां पर तडाग शब्द से महाहूद समझना मा 'दहमहेसुवा' हृद्महेषुवा-अल्प जलाशयोत्सर्गादि निमित्तक महोत्सव में, यहां पर हृदशब्द से छोटा तालाब समझना चाहिये, इसी प्रकार 'नई महेसुबा' नदी महोत्सव में गङ्गा यमुना बगैरह नदी विशेष में स्नानादि निमित्तक महो. त्सव में तथा 'सरमहेसुवा' सरोमहेषुवा सरोवर विशेष का निर्माण खातमुहूर्त ३५ यक्ष निमित्तना महोत्सव माटे मनावराय मथ। 'णागमहेसुवा' निमित्तना भाडोत्सव माटे सनावद डाय अथवा 'थूभमहेसुवा' स्तम्भ विशेष३५ ५५ ५न मडासय निमित्त मनाव। डाय अथवा 'चेइयमहेसुवा' नतामा २१-५२ सन यैतन्यनु' यथार्थ ज्ञान ३ माटे ४२वामा माता मंसिप निमत्ते अथवा 'रुक्खमहेस वा' वृक्षारोपण विगरे निभित्ते मनाये डाय २५५३॥ 'गिरिमहेसुवा' ५१ मिभित्तना भडास निमित्त नावेसाय 'दरीमहेसुवा' ४१-१३ विशेष निमित्त महोत्स५ मनावर डाय अथवा 'अगडमहेसुवा' ॥ मोहवाना महोत्सव निभित्ते मनालाय अथवा 'तडागमहेसुवा' भाइ तगोत्सala Gस निभित्तना भास निमित्त मनावर डाय मड या त ४थी महा सभा. मथवा 'दहमहेसुवा' २०६५/elશયના ઉત્સવ નિમિત્તે બનાવેલ હોય અથવા અહીં હદ શબ્દથી નાનું તળાવ સમજવાનું છે. मे प्रमाणे 'नईमहेसुवा' मा, यमुना विगेरे नही विशेषमा स्नानानिमित्तना भडास निभित्ते मनालय तथा 'सरमहेसुवा' सरी५२ विशेषना निमा मातमुड़त श्री माया सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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