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आचारांगसूत्रे यत्र किञ्चित्सत्य किश्चिन्मृषा च भवेद् यथा उष्ट्रेण गच्छन्तं जिनदत्तम् अश्वेन गच्छतीत्याह, अथ चतुर्थी भाषामाह-'ज नेव सच्च नेव मोसं नेव सच्चामोसं असञ्चामोसं नाम तं चउत्थं भासज्जायं ४' यत् पुनः नैव सत्यम् नैव वा मृषा नापि सत्यामृषा, अपि तु असत्यमृषा वर्तते तत् असत्यामृषानाम चतुर्थ भाषाजातमुच्यते इयमेव चतुर्थी भाषा असत्यामृषारूपा व्यावहारिकी भाषा बोध्या, एतासु चतसृषु भाषासु साधुः प्रथमां चतुर्थी च भाषां भाषा समित्या संयतः सन् भाषेत नतु द्वितीयां तृतीयां वा भाषामिति फलितम् । कुछ सत्य हो और कुछ असत्य हो उस को सत्यामृषा भाषा नाम का तृतीय भाषा जात कहते हैं जैसे-'उष्ट्र से जाते हुए जिनदत्त को घोडा से जिनदत्त जाता है' ऐसा बोलना सत्यामृषा भाषा कहते हैं क्योंकि जिनदत्त अंशमें यह भाषा सत्य है किन्तु उष्ट्र से जाते हुए को घोडे से जाते हुए कहना असत्य रूपा मृषा भाषा है इसलिये कुछ अंश में सत्य एवं कुछ अंश में असत्य होने से इस प्रकार के भाषा जात को सत्यमृषा भाषा समझनी चाहिये इसी प्रकार 'ज नेव सच्चं नेव मोसं' जो भाषा सत्य भी नहीं है और असत्य रूप मृषा भी नहीं है और 'नेव सच्चामोसं' सत्या मृषा भी नहीं है अर्थात् कुछ सत्य और कुछ असत्य भी नहीं है वह 'असच्चामोसं नाम तं चउत्थं भासज्झायं असत्याऽमृषा नाम का चतुर्थ भाषाजात माना जाता है अर्थात् जो बिलकुल ही सत्य नहीं है
और एकदम (बिलकुल) असत्यरूप मृषा भी नहीं है और सत्यमृषा भी नहीं है उस व्यावहारिक भाषा को असत्याऽमृषा कहते हैं क्योंकि व्यावहारिक भाषा को परमार्थतः सत्य भी नहीं कह सकते हैं और बिलकुल असत्य भी नहीं कह सकते हैं इसीलिये ऐसा व्यवहार उसी असत्याऽमृषा भाषा से व्यवहृत होता है इसलिये यह चतुर्थ भाषा जात को असत्याऽमृषा शब्द से व्यवहार करते हैं કે-ઉંટ ઉપર જતા જીનદાને ઘોડા ઉપર જનદત્ત જાય છે. તેમ બોલવું તેને સત્યામૃષાભાષા કહે છે. કેમ કે જીનદત્ત અંશમાં એ ભાષા સાચી છે. પણ ઉંટ પર જનારને ઘેડા પર જતો કહે અસત્યરૂપ મૃષાભાષા છે. તેથી કંઈક અંશમાં સત્ય અને કંઈક અંશમાં અસત્ય હોવાથી આવા પ્રકારની ભાષાજાતને સત્યામૃષાભાષા સમજવી. ૩ એજ પ્રમાણે 'जं नेव सच्चं ने मोस नेव सच्चामोसं' २ लाासत्य ५७५ न डाय भने ससत्य३५॥ भूषा પણ ન હોય અને સત્યામષા પણ ન હોય અર્થાત્ કંઈક સત્ય અને કંઈક્ર અસત્ય પણ नडाय ते 'असच्चामोस नाम तं चउत्थं भासज्जाय' ते असत्या भूषा नामनी योथी ભાષાજાત મનાય છે. અર્થાત્ જે એકદમ સાચી નથી અને બિલકુલ અસત્ય રૂપભાષા પણ ન હોય અને સત્યામૃષા પણ ન હોય એ વ્યાવહારિક ભાષાને અસત્યાડમૃષા કહે છે. કેમ કે વ્યાવહારિક ભાષાને એકદમ સત્ય પણ કહી શકતા નથી અને બિલકુલ અસત્ય પણું કહી શકતા નથી અન્યથા એ વ્યવહાર એ અસત્યાગ્રુષા ભાષાથી વ્યવહત થાય
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪