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________________ ६०६ आचारांगसूत्रे स्त्र्यादि परोक्षवचनमेव वदेदिति भावः । एवं स्त्र्यादिके दृष्टे सति स्त्री एवेयं वहुवचनमेव वदेत्, एवंरीत्या स्त्रीवचनादि यावत् परोक्षार्यविवक्षायां पुरुष एवायं, नपुंसकमेवेदम् इत्येवं रीत्या एवमेव एतद् अन्यद् वा एतत् इत्येवं निश्चित्य निष्ठाभाषी सन् भाषा भाषेत इत्याशयेनाह - ' इत्थीवेस पुरिसोवेस नपुंसगं वेस एयं वा चेयं अन्नं वा चेयं अणुवीइ ३, निट्टाभासी समियाए संजर भासं भासिज्जा' स्त्री वा एषा - स्त्री एवेयम्, पुरुषो वा एष - पुरुष एवायम्, नपुंसकं वा एतत् - नपुंसकमेवेदम्, एवं वा चैतत् - एवमेव एतत् अन्यद्वा चैतत् - अन्यदेव इदम् इत्येवम् अनुविचिन्त्य - निश्चित्य निष्ठाभाषी सन् नियतभाषी भूटा समित्या समतया संयत एव भाषां भाषेत वदेदित्यर्थः एवम् 'इच्चेयाई आयवणाई उपातिकम्म' इत्येतानि पूर्वोक्तानि भाषागतानि वक्ष्यमाणानि वा आयतनानि दोषस्थानानि उपातिक्रम्य उल्लङ्घ्य भाषां भाषेत इति । 'अह भिक्खू जाणिज्जा प्रतिज्ञा करनेपर एकचचत को ही बोले 'जाव परुक्खवयणं वइस्सामीति परुक्खवयणं वइज्जा' एवं यावत् द्विवचन को ही बोलूंगा ऐसी प्रतिज्ञा करने पर दिवचन का ही प्रयोग करे एवं 'बहुवचन को ही बोलूंगा' ऐसी प्रतिज्ञा होने पर बहुवचन का ही प्रयोग करे इस रीति से स्त्री वचनादि से लेकर यावत् परोक्षार्थ पर्यन्त की प्रतिज्ञा करने पर स्त्री आदि से लेकर परोक्षवचन पर्यन्त का ही वचन प्रयोग करे, इसी प्रकार स्त्री आदि के देखने पर 'इत्थीवेस' 'स्त्री ही यह है' एवं 'पुरिसोवेस' पुरुष ही यह है तथा 'नपुंसगंवेस' नपुंसक ही यह है इस रीति से 'एयं वा चेयं' और भी विचारकर ऐसा ही यह है तथा 'अन्नं वा चेयं अणुवीs निद्वाभासी' दूसरा ही यह है इत्यादि रूप से शोचविचार कर निष्ठा पूर्वक नियत भाषी होकर 'समियाए' समता पूर्वक 'संजए भासं भासिज्जा' संयत होकर ही भाषा का प्रयोग करे इसी प्रकार 'इच्चेयाई आययणाई उबातिकम्म' पूर्वोक्त और वक्ष्यमाण भाषागत दोषस्थानों को छोड़कर संयम पालन સાધુ ‘હુ એકવચન એટ્ટીશ' એમ વિચારે તેા એકવચન જ ખેલવું ‘જ્ઞા' યાવત્ દ્વિવનને ખેાલીશ એમ પ્રતિજ્ઞા કરે તેા દ્વિવચનનાજ પ્રયોગ કરવા તથા બહુવચનને જ કહીશ' તેમ પ્રતિજ્ઞા કરે તે બહુવચનને જ પ્રયે!ગ કરવા એ પ્રમાણે સ્ત્રી વગેરેથી લઇને 'परुक्खाणं वइस्स मीति परुकखत्रयण वइज्जा' परीक्षार्थ वचननी अतिज्ञा रे तो परोक्षार्थ वयन मोसवा ४ प्रमाणे श्री विगेरेने नेवाथी 'इत्थीवेस' मा स्त्री ४ छे अथवा 'पुरिसोवेस' मा ५३ष ४ छे तथा 'नपुंसगंवेस' मा नपुंस४ छे. प्रमाणे जीन्न पशु विचार अरीने 'एयं वा चेय" आ मन छे. तथा 'अन्नं वा चेय' माजी विगेरे अमरथी 'अणुवीय' समल विचारीने 'निट्टामासी' निष्ठा लाषि ने 'समियाए संजए भासं भासिज्जा' समता पूर्व संयत थाने भाषानो प्रयोग र ४ 'इच्चेयाई आययणाई उपातिकम्म' प्रमाणे यूर्वोक्त मने वक्ष्यमाणु ભાષાગત દોષસ્થાનાને છેડીને સયમ પાશ્ચન પૂર્ણાંક ભાષાના પ્રયાગ કરવા. ४ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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