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आचारांगसूत्रे छिन्नस्नेहरहितो मे मम कायः सम्पन्न इत्येवं यदि जानीयात्तर्हि तह पगारं कार्य' तथाप्रका. रम्-उदकबिन्दुरहितं स्नेहरहितञ्च कायम् 'आमज्जिज्ज वा जाब पयाविजन वा' आमार्जयेद या यावत्-प्रमार्जयेद् वा संलिखेद् वा निलिखेद् वा उदवलयेद् वा उद्वर्तयेद् वा अन्तापयेद् वा प्रतापयेद् वा, उदकबिन्दु स्नेहादिवर्जितकायस्य आमार्जनादिना अप्कायिकजीवहिंसाया अभावेन संयमविराधना न संभवति 'तो' ततः-तदनन्तरम् ‘संजयामेव' 'संयतमेव' यतनापूर्वकमेव 'गामाणुगाम दुइज्जिज्जा' ग्रामानुग्रामम्-ग्रामाद ग्रामान्तरं गच्छेदिति ॥सू० १८॥
मूलम्-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दुइज्जमाणे अंतरा नो परेहिं सद्धिं परिजविय परिजविय गामाणुगाम दूह जिज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगाम दुइज्जिज्जा ॥४० १९॥ ___ छाया-स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा ग्रामानुग्रामं गच्छन् अन्नरा नो परैः सार्द्धम् परियाप्य परियाप्य ग्रामानुग्रामं गच्छेत्, ततः संयतमेव ग्रामानुग्रामं गच्छेत् ।।सू० १९॥ 'छिण्णसिणेहे काए' स्नेह से भी रहित हो गया है अर्थात् अच्छी तरह से सूख गया है ऐसा समझ ले तो 'तहप्पगारं कायं आमन्जिज्ज चा पमज्जिज्ज चा' इस प्रकार के बिलकुल सूखे हुए काय शरीर को अमाजन प्रमार्जन करे ‘एवं जाय पयाविज वा' यावत् उस उदकबिंदु रहित शरीर को संलेखन तथा प्रतिलेखन भी करे एवं उबलन मर्दन तथा उदवर्तन भी करे क्योंकि उदक बिन्दु रहित और स्नेहादि वर्जित शरीर का आमार्जनादि करने से अकायिक जीयों की हिंसा का संभव नहीं होने से संयम की विराधना नहीं होगी इसके बाद 'तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजिज्जा' संयमपूर्वक ही एक ग्राम से दूसरेग्राम गमन करे क्योंकि उक्तरीति से सूखे हुए कायको आमार्जनादि करने के बाद संयम पूर्वक विहार करने से संथम चिराधना नही होती ॥१८॥ ___ अब साधुओं को वाणी का संयमपूर्वक ही ग्रामान्तर में जाना चाहिये यह गये छे. सम सागे छ 'तहप्पगारं काय आमज्जिज्ज वा' पमज्जिज्ज वा' पी शतना બિસ્કુલ સુકાઈ ગયેલા શરીરને આમર્જન પ્રમાર્જન કરવું તથા એ પાણીની ભિનાશ पगना शरीरने यावत् 'जाव पयाविज्ज वा' समन तथा प्रतिवेपन पधु ४२यु तथा ઉદ્વેલન મર્દન તથા ઉદ્વર્તન માલીશ પણ કરવી કેમ કે પાણીના છાંટા વિના ! અને ભિનાશ વગરના શરીરનું આમાર્જનાદિ કરવાથી અકાયિક જેની હિંસા ને સંભવ ન
पाथी सयभनी विराधना यती नथी. 'तओ संजयामेव गामाणुगाम दुइज्जिज्जा' ते પછી સંયમ પૂર્વક જ એક ગામથી બીજે ગામ ગમન કરવું કેમ કે ઉક્ત પ્રકારથી સુકેલા શરીરને આમર્દનાદિ કર્યા પછી સંયમપૂર્વક વિહાર કરવાથી સંયમની વિરાધના થતી નથી ૧૮
હવે સાધુઓએ ગ્રામાન્તર ગમન કરતાં વાણી સંયમ રાખવા માટે સૂત્રકાર
श्री आया। सूत्र : ४