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________________ ५३० आचारांगसूत्रे नावारूढं साधुं वदेत्-'आउसंतो समणा !' आयुष्मन्तः ! श्रमणाः ! 'एयं ता तुमं नावं' एताम् तायत् सम् नावम् "आलित्तेण वा पीढएण वा' आलिप्तेन वा-नौ चालककाष्ठविशेषेण, पीठकेन वा-पट्टकेन, 'बंसेण वा वलएणवा' वंशेन वा-वंशदण्डेन, बलकेन वा-नावः उपकरणविशेषेण 'अवलुएण वा चाहेहि' अवलुकेन वा नौसंचालकवंशविशेषेण वह- नय, देशान्तरं तटान्तरं वा प्रापय, इत्येवंरीत्या यदि नाविको वदेहि 'नो से तं परिन्नं परिजाणिज्जा' नो स साधुः तां परिज्ञाम् नाविकप्रतिज्ञारूपां प्रेरणाम् परिजानीयात्-स्वीकुर्यात्, अपि तु 'तुसिणीओ उपेहिज्जा' तृष्णीकः मौनमालम्ब्य उपेक्षेत न किमपि चदेव ।।सू० १३।। मूलम्-से णं परो नावागओ नायागयं वइज्जा आउसंतो! समणा! एयं ता तुम नावाए उदयं हत्थेण वा पाएण वा मत्तेण वा पडिग्गहेण या नावा उस्सिचणेण वा उस्सिचाहि, नो से तं परिन्नं परिजाणिज्जा, तुसिणीओ उवेहिज्जा, से णं परो नावागओ नायागयं वइज्जा आउ. होकर ही उसकी उपेक्षा कर दे 'से णं परो नावागओ नावागयं वइज्जा आउसंतो समणा' फिर भी वह-पर-गृहस्थ नावपर चढा हुवा नाविक नायपर चढे हुए साधु को कहे कि हे आयुष्मन् भगवन् ! श्रमण ! 'एयं ता तुमं नावं' इस नावको यदि आप नायको चलाने वाले काष्ठ विशेष रूप 'आलित्तण वा पीठएण वा' आलिप्त से या पीठक पद से या 'यंसेण चा, बलएण या' चांस के दण्ड विशेष लग्गासे या बालक से अर्थात् नायका उपकरण विशेष से या 'अवलुएण वा बाहेहि' अवलुक अर्थात् नौ संचालक चांस विशेष से नावको चलाते हुए दूसरे तटतक या दूसरे देशतक ले जाइए इस तरह यदि नाविक साधु को कहे तो 'णो से तं परिन्नं परिजाणिजा' वह साधु उस नाविक की इस प्रतिज्ञा प्रेरणा को नहीं स्वीकार करे अपितु 'तुसिणीओ उहिज्जा' तुष्णीक चुप होकर मौन साधे हुए उपेक्षा करदे ।। सू. १३॥ णीओ उवेहिज्जा' मौन २ही ना अपेक्षा ४२वी, 'से णं परो नावागओ नावागय वइ. જ્ઞા મૌન રહેવા છતાં પણ તે નાવ પર ચઢેલ નાવિક નાવ પર ચઢેલા સાધુને કહે કે 'आउसंतो समणा !' 3 आयुष्मन् श्रम ! 'एयता तुमं नाव' । ना२२ ॥५ नाय यसापानी 108 विशेष ३५ 'आलित्तेण वा' मालितथी अथवा 'पीढएण वा' पी४पथी अथवा 'वंसेण वा' पसिना विशेषथी , 'बलएण वा' मरथी अर्थात् नापना ७५४२ विशेषथी मया 'अवलुएण वा' अवयु४ अर्थात् नापने यसापानी पास विशे. पथी 'वाहेहि' मी नासुधी भी देश सुधी as on५ ॥ प्रभाए थे नाव: साधुन त ५Y ‘णो से तं परिन्नं परिजाणिज्जा' साधुये नाविना प्रेरणाना २१४॥२ ७२३ नही ५२' 'तुसिणीओ उवेहिज्जा' ५५ २४ीन भौन ४ तेनी उपेक्षा ४२वी 1१३॥ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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