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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. २ सू० १८ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् ___ ४३ वेषु वा, एवम् 'उऊमु वा ऋतुषु वा ऋतुसम्बन्ध्युत्सवेषु वा 'उऊसंधीच वा' ऋतुसन्धिषु वा-ऋतुद्वयसंक्रमणप्रकरणेषु वा, 'उऊपरियट्टेसु वा' ऋतुपरिवर्तेषु वा-ऋतुपरिवर्तनेषु या ऋत्वन्तरेषु वा प्रकरणेषु 'बहवे समणमाहणअतिहिकिवणवणीवगे' बहून् अनेकान् श्रमण ब्राह्मण अतिथिकृपणवनीपकान् तत्र द्वित्रान् श्रमणान् पञ्चषान् ब्राह्मणान् अतिथीन् द्विवान् कृपणान् पञ्चषान वनीपकान् दीनयाचकान् इत्येवंरीत्या संख्यातान् श्रमणादीन् 'एगाओ उक्खाओ' एकस्या उखायाः एकस्माद् उखारूपपात्रात पिठरकादित्यर्थः उदधृत्य गृहीत्वेत्यर्थः 'परिपसिज्जमाणे पेहाए' परिवेष्यमाणम् अन्नादिकं प्रेक्ष्य तदीयमानाहारेण भोज्यमानान् श्रमणब्राह्मणादीन् अश्लोक्य एवं 'दोहिं उक्खाहि' द्वाभ्याम् उखाभ्यां द्विपात्राभ्यामादाय 'परिएसिज्जमाणे' परिवेष्यमाणम् अशनपानादिकं 'पेहाए' प्रेक्ष्य विलोक्य दृष्ट्येत्यर्थः तथा 'तिहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए' तिमभ्यः उखाभ्यः पात्रत्रयादित्यर्य: उद्धृत्य परिवेष्यमाणम् अनादिकं प्रेक्ष्य दृष्ट्वेत्यर्थः एवं 'चउहि उखाहि' चतसभ्यः तथा 'छम्मासिएसुवा'-छे मासिक उत्सव में एवं 'उऊसुवा' ऋतुसम्बन्धी उत्सव में तथा 'उऊपरियढेसु वा ऋतुपरिवर्तन सम्बन्धी उत्सव रूप प्रकरण में 'बहवे समणमाहण अतिहि किवणवणीवगे'-बहत-अनेकों श्रमण-ब्राह्मण-अतिथिकृपण दीन वनीपक-याचकों को गिन गिन करके अर्थात् उन श्रमण ब्राह्मण वगै. रह में दो तीन श्रमणों को पांच छे ब्रह्मणों को तथा एक दो अतिथियों को दो तीन कृपणों-दीन गरीब दरिद्रों को तथा पांच छे वनीपकों-याचकों को इसप्रकार गिन गिन कर 'एगाओ उक्खाओ-' एक उखा-बटलोही से निकाल कर 'परिएसिज्जमाणे पेहाए' परिवेष्यमाण-परोंसे जाते हुए अन्नादि को देखकर अर्थात् उस दीयमान आहारों से खिलाये जाते हुए श्रमण-ब्राह्मण-अतिथि-वगैरह को देख कर इसीप्रकार 'दोहिं उक्वाहि' दो उखा बटलोहिओं से निकाल कर 'परिएसिजमाणे पेहाए' परोसे जाते हुए अन्नादि चतुर्विध आहार जात को देखकर एवं 'तिहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए' तीन उखाओं से निकाल असभा तथा छम्मासिएसु वा' ७भासन सभा तथा 'उऊसु वा' * मधी अस५i 'उऊपरियट्टेसु वा' ऋतुपरिवर्तनमा उत्सवमा 'बहवे समणमाहण अतिहि किवणवणीवगे' ign શ્રમણ, બ્રાહ્મણ, અતિથિ, કૃપણ, ગરીબ અને યાચકને ગણીને અર્થાત્ એ શ્રમણ બ્રાહ્મણ વિગેરે પૈકી બે ત્રણ શ્રમણને પાંચ છ બ્રાહ્મણોને તથા ચાર છે અતિથિને બે ત્રણ ગરીબેને તથા पांय छ यायाने भाशते रात्री उशन 'एगाओ उक्खायो' पासमाथी ४७डी परिएसिज्जमाणे पेहाए' पीरसात मन्नान अर्थात् में अपाता आहारमाथी भरापाता श्रम, ब्राझए, अतिथी विगैरेननधन से शते 'दोहिं उक्खाहिं' मे पास माथी हाडी पी२सात अन्ना यार प्रहार पाडा२ तन नहन तथा 'तीहि उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए' र पासमाथी 07 पीरसात मे यार ॥२॥ मा२ तनेजान श्री माया सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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