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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध ३ उ० १ सू० ४ तृतीयं ईर्याध्ययननिरूपणम्
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टीका - अथ वर्षाकाले व्यतीतेऽपि साधुभिः साध्वीभिश्व यदा येन प्रकारेण गन्तव्यं नदधिकृत्य प्रतिपादयितुमाह- 'अह पुणेवं जाणिज्जा' अध-यदि, पुनरेवं वक्ष्यमाणरीत्या जानीयात् - ' चत्तारि मासा वासावासाणं वीइकंता' चत्वारो मासाः आषाढ पूर्णिमामारभ्य कार्तिक पूर्णिमा पर्यन्तम् वर्षाकालानां व्यतिक्रान्ताः व्यतीताः, तथा 'हेमंताण य पंचइस राययप्पे परिवसिए' हेमन्तानाश्च पञ्चदशरात्रिक्रल्पे पर्युषिते सति वर्षाकालिकचातुर्मास्ये व्यतीतेऽपि यदि वृष्टिर्भवत्येव तर्हि हेमन्तस्य पञ्चदशदिनेषु व्यतीतेषु गमनं कर्तव्यमिति भाव:, अतएवाह - 'अंतरा से मग्गे बहुपाणा' अन्तरा गन्तव्यमार्गमध्ये तस्य - साधोः मार्गः पन्थानः बहुप्राणाः अनेकप्राणियुक्ताः 'बहुबीआ बहुहरिआ' बहुबीजाः - अनेक बीजाङ्कुर · युक्ता बहुहरिताः बहुहरिततृणादियुक्ताः 'बहृदगा' बहूदका: अत्यन्ताधिकशीतोदकसहिताः
अब वर्षाकाल समाप्त होनेके पश्चात् चातुर्मासवाले स्थल में अधिक रहने के संबंध में उत्सर्ग एवं अपवाद मार्ग के विषय में सूत्रकार कथन करते हैं
टीकार्थ- 'अह पुण एवं जाणिज्जा' चोमासी बीत जाने पर पूर्वोक्त संयमशील साधु एवं साध्वीजी के समझ में इस प्रकार आये कि 'चत्तारि मासा वासावासाणं चिक्कता' चौमासे का चारों मास बीत चुके हैं, अर्थात् कार्तिकशुक्ल पूर्णिमा बीत जाने के बाद मार्गशीर्ष प्रतिपदा के दिन साधुको वर्षावास निवास्थान से विहार करना चाहिए यह उत्सर्ग मार्ग है, अतः अब अपवाद मार्गका प्रतिपादन करते हैं 'हेमंताय पंचदसरायकप्पे परिवुसिए' यदि हेमंतऋतु का पंद्रह दिन में चरसाद हो जाय तो पंद्रहदिन बीत जाने पर बिहार करना चाहिये । 'अंतरा से
बहुपाणा' कारण की गमन करने के मार्ग में बहुत से प्राणी 'बहुवीया, बहुहरिया, बहूहदगा' अनेक बीजांकुर से युक्त तथा अधिक प्रमाण में हरित काय तृणादि वनस्पति तथा अधिक प्रमाण में शीतोदक के साथ 'बहूसिंग वन गद्गम
હવે વર્ષાકાળ સમાપ્ત થયા બાદ રહેવાના સંબંધમાં ઉત્સ અને અપવાદ માગ વિષે સૂત્રકાર કથન કરે છે—
अर्थ- 'अह पुण एवं जाणिज्जा' या भासानो समय यूरो थया पछी पूर्वेत संयमशील साधु ाने साधीना समन्वामां मेवु भावे 'चत्तारि मासा विइकता' योमासाना ચારમાત્ર વ્યતીત થઈ ગયા છે અર્થાત કાર્તિક શુકા પૂર્ણિમા વીતી ગયા બાદ માશી` પ્રતિપદાએ સાધુએ વર્ષોપાસના સ્થળેથી વિહાર કરવા જોઈએ આ ઉત્સ भार्ग छे, तेथी हवे अपवाह भार्ग प्रतियाहन रे छे 'हेमंताणय पंचदसरायकप्पे परि वुसिए' ले डेभन्त ऋतुना पंडर दिवसमां परसाह होय तो ते पंहर दिवस पोती गया पछी विहार रखे। 'अंतरा से मग्गे बहुपाणा' र गमन रवाना भार्गमा धा आलिया 'बहुबीया बहुहरिया बहूदुगा' ने जीतपुर युक्त सीमोतरी तृष्यु विगेरे तथा अत्यंत अधिक शीतक सहित 'बहुत्तिगपनगद्गमट्टिया जाव ससंताणगा' बूता तंतु लव ३५
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪