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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंघ २ उ. ३ सू. ५९ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ७३ किञ्चिन्मात्रप्राणियुक्तम्, अल्पबीजम, 'अप्पहरियं' अल्पहरितम् हरितकायवनस्पतिविशेष: 'अप्पोस' अल्पौषम् 'अप्पोदयं' अल्पोदकम् 'जाव अप्पसंताणगे' यावत्-अल्पोत्तिापनकलूतातन्तुजालरूपाल्पसन्तानयुक्तम् फलकादि संस्तारकं यदिजानीयात् तर्हि 'तहप्पगारं' तथाप्रकारम् अल्पाण्डादि सहितं 'संथारग' संस्तारकम् 'पडिलेहिय पडिलेहिय' प्रतिलिख्य प्रतिलिख्य पुनः पुनः प्रतिलेखनं विधाय एवं 'पमज्जिय पमज्जिय' प्रमृज्य प्रमृज्य पुनः पुनःप्रमार्जनं कृत्वे. त्यर्थः 'आयाविय आयाविय' आताप्य आताप्य-पौनःपुन्येन सूर्यकिरणादौ आतापनं कृत्या 'विधूणिय विधूणिय' विधूय विधूय पुनः पुनः विधननं कृत्वा इतस्ततः कम्पादिना चालन विधाय 'तओ संजयामेव' ततः तदनन्तरम् प्रतिलेखनादिकरणानन्तरमित्यर्थः संयत एव संयम पालनपूर्वकमेव 'पच्चप्पिणेज्जा' प्रत्यर्पयेत् फलकादिसंस्तारकं गृहस्थेभ्यः परावर्तयेत् ॥५९॥ से भी रहित है एवं 'अप्पोसं' अल्पओष ओषकणों से भी वर्जित है एवं 'अप्पो. दयं जाय' अल्पोदक शीतोदक से भी रहित है एवं यावत् अल्प उत्तिंग ऊल वगैरह उत्तिन छोटे छोटे प्राणियों से भी रहित है या थोडे ही ऊल वगैरह उत्तिंग प्राणी से युक्त है एवं थोडे ही पनक-लाल सूक्ष्म कीट पतंगो से युक्त है और थोडे ही शीतोदक मिश्रित गीलीमिट्टी से युक्त है तथा 'अप्पसंताणगं' थोडे ही मकरे के जाल संतान परम्परासे युक्त है ऐसा जानकर या देखकर 'तहप्पगारं संथारगं' इस प्रकार के अल्पाण्ड वगैरह से युक्त फलक पाट वगैरह संस्तारक संथरा को पडिलेहिय पडिलेहिय' बार बार प्रतिलेखन करके और 'पमजिय पमजिय' बार बार प्रमार्जन करके तथा बार बार सूर्यकिरणादि द्वारा 'आया. विय आयाचिय' आतापन करके एवं 'विधूणिय विधूणिय' बारबार विधुनन संचालन कंपन के द्वारा साफ सुथरा करके 'तओ संजयामेव पच्चप्पिणिज्जा' उसके बाद संयत संयमशील होकर फलक पाट वगैरह संस्तारक संथराको प्रत्यर्पण साधु गृहस्थको वापस करे ॥५९॥ सीसातरी घास तु विशेष विमान . तथा 'अप्पोस अप्पोदयं जाय' मा५-५२३ना કથી રહિત તથા અપેદક ઠંડા પાણીથી પણ રહિત એવં યાવત્ અલ્પઉસિંગ નાના નાના પ્રાણિ વિનાને છે. અથવા થેડા જ ઉલ વિગેરે ઉસિંગ પ્રાણિયાવાળે છે. તથા થોડા જ પનક–લાલજીણું જીવ–પતંગથી યુક્ત છે અને થોડી જ ઠંડા પાણીથી મળેલ भारीवाणी छे. 'अप्प संताणगं' तथा थोडी २४ भनी तainो छ. मा प्रभारी Myीन न'तहप्पगार संथारगं' माया प्रा२ना २८५म विगेरे पास पाट विगेरे संथाराने 'पडिलेहिय पडिलेहिय' मराम२ प्रतिमन प्रशन तथा 'पमज्जिय पमज्जिय' मराभ२ प्रभा न श तथा 'आयाविय पयाविय' सू३२ द्वारा सरासर मातापन शन. तपावन तथा 'विधूणिय विधूणिय' विधूनन-भजेशने सास शर 'तओ संजयामेव पच्चप्पिणेज्जा' सयमसी न ३४, पाट विगेरे सस्तार याराने સાધુએ ગૃહસ્થને પાછા આપવા. સૂ. ૫૯
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श्री मायारागसूत्र :४