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________________ - मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ३ लू. ५८-५९ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ४७१ तम् सप्राणम्-प्राणिजीवजन्तुसहितम् सबीजम्, बीजयुक्तम्, सोदकम्-शीतोदकसहितम् सह रितम्, यावत्-सोत्तिङ्गपनकलतातन्तुजालरूपसन्तानसहितं फलकादिसंस्तारकं वर्तते इति एवं रीत्या यदि जानीयात् तर्हि 'तहप्पगारं' तथाप्रकारकम् अण्डादिसहितम् 'संस्तारकफलकादिकम् ‘णो पच्चप्पिणिज्जा'नो प्रत्यर्पयेत्, न परावर्तयेत्, अण्डादिसहितसंस्तारकप्रत्यर्पणे साधूनां तच्छुद्धादौ हिंसासंभवेन अहिंसावतभङ्गापत्या संयमविराधना स्यात् ॥१८॥ ___मूलम्-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेजा संथारं पञ्चप्पिणित्तए, से जं पुण संथारगं जाणिजा-अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्प. हरियं अप्पोसं अप्पोदयं जाव अप्पसंताणगं, तहप्पगारं संथारगं पडि. है या 'सहरिय' हरित तृण घास वगैरह से भी युक्त है 'सओसं' तथा ओषकणों से भी भरा हुआ है तथा 'सोदयं सोदक शीतोदक से भी युक्त है या 'जाय ससंताणगं' यावत् उत्तिङ्ग उल वगैरह छोटे छोटे प्राणियों से युक्त है तथा पनक फनगा चीटी पिपरी पतंगों से भी युक्त है तथा मर्कट मकरा जाल सन्तान परम्परा से भी युक्त फलकपाट वगैरह संपरा है 'तहप्पगारं संथारगं णो पञ्चप्पिणिज्जा' ऐसा देखकर या जान कर उस अंडा वगैरह से भी युक्त फलक पाट वगैरह संथार को वापस नहीं करना चाहिये क्योंको इस प्रकार के अण्डे प्राणी बीज हरित-ऊल फनगा पतंग मकर के जालों से भरे हुये फलक पाट चौकी विगैरह संस्तारक-संथारा को प्रत्यर्पण करने से गृहस्थादि के द्वारा उस जीयजन्तु से भरे हुवे फल कादि संस्तारक को साफसुथरा करने में जीवहिंसा होने की संभावना रहती है, इसलिये साधुओं के अहिंसावत का नाश हो जाने से संयम की विराधना होगी इसलिये उसे वापिस नहीं करे ॥ ५८ ॥ આ ફલકાદિ સંસ્તારક ઇંડાઓ વાળા છે. અથવા પ્રાણિયોથી યુક્ત છે. કે બીયાએ વાળું छ अथवादीaan वा छे. 'सोस सोदयं जाव' तया ।५-५२३ ४थी ५y मरेस તથા સેદક શીદકથી પણ યુક્ત યાવત ઉસિંગ-પતંગિયા વિગેરે નાના નાના પ્રાણિયોથી युत छ. तथा पन-टीडीयो विगेरेथी युक्त छ, मथ। 'संताणगं' भ! जसथी ५७ मा ३०४ पाट सयारे। मरे छे. 'तहप्पगारं संथारगं' से प्रमाणे नन मीन से 31 विगेरेथी युत ३४४ ५८ विगेरे संथाराने 'णो पच्चप्पिणिज्जा' पाछ। मा५१ नाही. म કે આવા પ્રકારથી ઈડા, પ્રાણી-બીજ-હરિત-ઉલ-પનક–પતંગ મકોડાની પંક્તિથી યુક્ત ફલક, પાટ, ચોકી વિગેરે સંસ્મારક પાછો આપવાથી ગૃહ વિગેરે દ્વારા એ જીવજંતુથી ભરેલ ફલકાદિ સંસ્તારક સાફસુફ કરવાથી જીવ હિંસા થવાની સંભાવના રહે છે. તેથી સાધુઓના અહિંસા વ્રતમાં ખામી આવવાથી સંયમની વિરાધના થશે તેથી તે સંથારે પાછો આપ ન જોઈએ છે સૂ. ૫૮ છે श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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