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आचारांगसूत्रे प्रतिमा अभिग्रह विशेषरूपा प्रतिज्ञा प्रतिपाद्यते-से भिकखू या भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा, 'जस्सुवस्सए संवसेज्जा' यस्मिन् उपाश्रये संक्सेत् निवासं कर्तुम् आगच्छेत् 'जे तत्थ अहासमण्णागए' यानि तत्र-तस्मिन् उपाश्रये यथासमन्वागतानि पूर्वकालत: स्थितानि संस्तारकाणि 'तं जहा-इक्कडेइ वा, कढिणेइ चा जंतु येइ वा परगेइ वा' इक्कडं वा, कठिनं वा जन्तुकं वा, परकं वा 'मोरगं वा' मयूरकं वा 'तणं वा सोरगं वा जाव' तृणकं वा तृणविशेषनिमित्तम्, सोरकं वा, यावत्-कुशंवा कूर्चकं वा पर्वकं वा पिप्पलकं वा 'पलालेइ वा' पलालकम्-शालिपलालनिर्मितं कटादि वा स्यात् 'तस्स लाभे तस्य इक्कडादेः संस्तारकस्य प्राकालात् तत्र विद्यमानस्य तस्य लाभे सति 'संवसेज्जा' संवसेत् नदेव गृहीत्वा तत्र शयना.
टीकार्थ-भिक्खू चा, भिक्खूणी या जस्सुवस्सए संबसेज्जा' 'वह पूर्वोक्त भिक्षु जैन साधु और भिक्षुकी जैन साध्वी जिस उपाश्रय में रहने के लिये आवे 'जे तत्थ अहासमण्णागए' इस उपाश्रय में जो पहले ही से रक्खे हुए संस्तारक हो 'तं जहा इकडेइया' जैसे कि इक्कड कोमल तृण घास वगैरह से निर्मित कोमल संस्तारक विस्तरा हो या 'कढिणेइया' कठिन संस्तरण विस्तरा हे या 'जंतुएई वा' जन्तुक तृण सामान्य से निर्मित संथरा हों अर्थात् कोमल संथरा हों या अत्यंत कठोर विस्तरा संथरा हो या साधारण घास वगैरह से बनाया हुआ संथरा हो अथवा 'परगेइवा' परक पुष्पादि को सीने वाले तृण विशेष से बनाया हुआ संथरा हो या 'मोरगेइ वा' मयूर के पिच्छों से बनाया हुआ कटचटाई वगैरह संथरा हो या 'तणेइवा' तृणक तृण विशेष रूप ही संथरा हो या "सोरगेइ वा सोरक मृदुतण विशेष से बनाया हुआ संथरा हो या 'जाव पलालेइ वा जाव' यावत् कुश दर्भ से बनाया हुआ संथरा अर्थात् चटाइ वगैरह संथरा विस्तरा हो, अथवा कूर्चक-कूची विशेष से बनाया हुआ संथरा बिस्तरा हो या काष्ठ से बनाया
_Aथ-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' त सयमा ति साधु म. सावी 'जस्सुवस्सए सवसेज्जा' रे पाश्रयमा नियास ४२५॥ भाव ते 6॥श्रयमा 'जे तत्थ अहा समण्णागए' २ परथी ४ राणे संता: उय 'तं जहा' रेम है 'इक्कडेइ वा' । तृण धास विश्थी मनावर मग सता२४-A20 A२१। 'कढिणेइ वा' ४४५ सस्ता२४ सराय जंतुएइ वा' 'तु-सामान्य तृyथी मनासा स२४ खाय अर्थात म सस्ताરક હોય કે અત્યંત કઠણ સંસ્તારક હોય અથવા સાધારણ ઘાસ વિગેરેથી બનાવેલ सता२४ डाय अथवा 'परगेइ वा' ५२४-मेट ४ दूस वगेरेने सीवापामा विशेषथी मनावर स य 1241 'मोरगेइ वा' भारना पीछाथी मनावट सस्ता२४ाय अथवा तणेइ वा' तु विशेषथा मनावद सस्ता२४ डाय अथवा 'सोरगेइ वा' मग तथा मनावर सरता२४ डाय 'जाय पलालेइ वा' यावत थी सनास साडी वगेरे सरताવક હાથ અથવા કુર્શકથી બનાવેલ સંસ્તારક હોય અથવા પીપળાના લાકડાથી બનાવેલ
श्री सागसूत्र :४