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आचारांगसूत्रे
शनाय निर्गन्तुं प्रवेष्टुं वा स उपाश्रयः कल्पते, 'जावऽणुचिताए' यावद् अनुचिन्तायै स्वाध्यायानुचिन्तनार्थमपि स उपाश्रयो न कल्पते इति शेषः तदुपसंहरन्नाह - 'तहप्पगारे उवस्सए ' तथाप्रकारे पूर्वोक्तरूपे उपाश्रये 'णो ठाणं वा सेज्जं वा जाव चेतेज्जा' नो स्थानं वा ध्यानरूपं कायोत्सर्गम् शय्या वा संस्तारकम्, यावद् निषीधिकां वा स्वध्यायभूमिं चेतयेत् कुर्यात् तथा सति संयमविराधना स्यात् ।। ० ४५ ॥
नहला रहे हैं अर्थात् स्नान करा रहे हैं ऐसा देख ले तो उस उपाश्रय में 'णो पण्णस्स' संयमशील साधु को और साध्वी को- 'निक्खमणपवेसणाए जाव' fasser निकलना नहीं चाहिये और प्रवेश भी नहीं करना चाहिये और यावत् स्वाध्याय का 'अणुचिंताएं' अनुचिन्तन मनन भी नहीं करना चाहिये अर्थात् जिस उपाश्रय के निकट में गृहस्थ वगैरह अपने घर में एक दूसरे को नहला रहे हैं ऐसा देखने में आता हो तो उस उपाश्रय में नहीं यातायात करना चाहिये और स्वाध्याय वगैरह करने के लिये रहना भी नहीं चाहिये क्योंकि इस प्रकार के उपाश्रय में रहने से उक्तरीति से संयम आत्मा की विराधना की संभावना रहती है इसलिये 'तहप्पगारे उवस्सए' उस प्रकार के उपाश्रय में 'णो ठाणं वा' स्थान ध्यान रूप कायोत्सर्ग के लिये स्थान ग्रहण नही करना चाहिये और - 'सेज्जं वा जाव चेतेजा' शय्या शयन के लिये संस्तारक संथरा भी नहीं पाथरना-बिछाना चाहिये तथा निषीधिका - स्वाध्याय करने के लिये भी भूमि ग्रहण नहीं करना चाहिये क्योंकि उस प्रकार के उपाश्रय के निकटवर्ती सागरिक गृहस्थ लोग अपने अपने घर में स्नानागार में जाकर खुले हुए बाथरूम में ठंडा पानी से या गरम पानी से एक गृहस्थ दूसरे गृहस्थ को या एक गृहपत्नी वगैरह दूसरी स्त्री वगैरह को नहला रही है या सींच रही है या
रावे छे. तेवु वे तो मेवा उपाश्रयमां 'णो पण्णस्स निक्खमणपवेसणाप' प्राज्ञ संयम शील साधुये हैं साध्वीमे नीउजवा है अवेशवाने योग्य नथी. मने 'जाव अणुचिंताए ' ચાવત્ સ્વાધ્યાયનું અનુચિંતન-મનન પણ કરવુ નહી. અર્થાત્ જે ઉપાશ્રયની નજીક ગૃહસ્થ વિગેરે પોતાના ઘરમાં એક બીજાને નવડાવતા હાય તેમ જોવામાં આવે તે એ ઉપાશ્રયમાં ગમનાગમન કરવુ' નહી' કે સ્વાધ્યાય વિગેરે કરવા માટે પણ ન રહેવુ. કેમ } या प्रभारना उपाश्रयमां रहेपाथी संयम आत्मानी विराधना थाय छे. तेथी 'तहप्पगारे उबस्सए' से प्रारना उपाश्रयमा 'ठाणं वा' स्थान- ध्यान३य प्रायोत्सर्ग भाटे स्थान अडा
२ नहीं' 'सेज्जं वा' भने शय्या-शयन पुरवा भाटे संथारा पशु पाथरवो नहीं तथा 'जीव चेतेज्जा यावत स्वाध्याय पुरवा भाटे या लूभिग्रह १२वी नहीं, डेभ टु मेवा પ્રકારના કે જેની નજદીક ગૃહસ્થા પેાતાના ઘરમા કે સ્નાનાગારમાં જઈને ઉઘાડા ખાથરૂમમાં ઠંડા પાણીથી એક વ્યક્તિ ખીજી વ્યક્તિને અથવા એક સ્ત્રી અન્યશ્રી વિગેરેને નવરાવે કે પાણીનું સીચન કરતા ડ્રાય કે ધેાઈ રહ્યા હાય તેમ જોવામાં આવે તે
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪