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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ३ सू० ३७ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ४२७ ततः संयत एव निष्क्रामेद् वा प्रविशेद् वा ।।० ३७॥
टीका-ग्लानादि परिस्थितिविशेषवशात् शाक्य चरकादिभिः सह संवासे विधि प्रतिपादयितु माह-'से 'भिक्खू वा भिक्खुणी वा' पूर्वोक्तो भावभिक्षु भिक्षुकी वा 'से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा' स साधुः यदि पुनरेवं वक्ष्यमाणस्वरूपम् उपाश्रयं जानीयात् तथाहि 'खुड्डियाओ' क्षुद्रिकाः लघ्यः तथा 'खुड्डदुवारियाओ' क्षुद्रद्वाराः लघुद्वारसहिना: 'निय. याओं' नीचाः उच्चस्त्व रहिता 'सनिरुद्धाओं' संनिरुद्धाः शाक्यचरकादिभिः व्याप्ताः 'भयंति' भवन्ति वर्तन्ते तर्हि 'तहप्पगारे उवस्सए' तथाप्रकारे तथाविधे क्षुद्रे क्षुद्रद्वारसहिते शाक्य चरकादिभिः संनिरुद्ध चोपाश्रये 'राओ वा वियाले वा' रात्रौ वा विकाले वा विकटसमयेत्रा 'निक्खममाणे वा पविसमाणे वा' निष्क्रममाणो वा प्रविशन् वा 'पुरा हाथेण वा' पुरा पूर्व
अय ग्लानि बिमारी वगैरह के कारण परिस्थिति विशेष वश शाक्य चरक वगैरह के साथ रहने की विधि बतलाते हैं।
टीकार्थ-से भिक्खू या, भिक्खुणी वा, से जं पुण उवस्मयं जाणिज्जा-खुड्डियामी खुडदुवारियाओ नीयाओ संनिरुद्धाओ भवंति' वह पूर्वोक्त भिक्षुकसंयमशील साधु और भिक्षुकी-साध्वी यदि ऐसा-वक्ष्यमाण रूप से उपाश्रयको जान ले कि-यह ऊपाश्रय रूप वसति क्षुद्रिका-बहुत छोटी और क्षुद्र द्वार छोटे द्वार वाली है और नीचा बहुत नीचे है और संनिरुद्धा बहुत से शाक्य चरक वगैरह श्रमणों से व्याप्त है अर्थात् भरी हुई है इसलिये 'तहप्पगारे उवस्सए राओ चा, चियाले चा, णिक्खममाणे वा, पविसमाणे या पुरा हत्थेण वा, पच्छा पायेण या, तओ संजयामेव णिक्खमिज्ज वा, पविसिज्ज वा' इस प्रकार के छोटे द्वार वाले और नीचे छोटे उपाश्रय में जो कि शाक्य चरकादि श्रमणों से भरा हुआ भी है इस तरह के उपाश्रय में रात में या विकाल समय में बाहर निकलते
- હવે બિમારી વિગેરેને કારણે પરિસ્થિતિ વિશાત્ શાક્ય, ચરક વિગેરેની સાથે રહેવાની વિધિનું કથન કરે છે.
-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते सयभशीय साधु भने साथी से पुण उवस्सय' जाणिज्जा' ले १६यभाए प्रथाश्रयने , 'खुडियाओ' मा उपाश्रय ३५ सति घी नानी छ. २०२ 'खुड्डदुवारिया ओ' घर नाना पायवाणी छ. तथा 'नीयाओं' नीया छ. तथा 'संनिरुद्धाओ भवति' सनि३५ अर्थात् ५।
४५ २२४ विगेरे श्रमणेथी ।यही छ. मेट , तमनाथी मरेसी छे. तेथी 'तहप्प. गारे उवस्सए' मा प्रा२ना नाना पारावास मने नीया अनेनाना पाया। २ ४१ २२४ विगेरे श्रमणे येस , प्रा२न पाश्रय 'राओ वा रात्र' मा 'वियाले वा' (4avi र ? 'णिक्खममाणे वा महा२ नाndi, 'पविसमाणे या' ५२ प्रदेश ७२पाने। समये 'पुरा हत्थेण वा' ५७सा यथी से पायना स्थानन
श्री आया। सूत्र : ४