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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ . २ सू० २७ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ३९१ कर्मान्तानि चर्ममय मशकारिनिर्माणगृहाणि 'वक्कयकम्मंताणि वा' वल्कलफर्मान्तानि वा बल्कलमयवस्तुनिर्माणगृहाणि 'इंगालकम्मंताणि वा' अङ्गारकर्मान्तानि वा, अङ्गारमयकाष्ठनिर्वाण परिणतवस्तु (कोलसा) निर्माणगृहाणि, 'कट्ठककम्मंताणि वा' काष्ठकर्मान्तानि वा काठमयगृहाणि 'सुसाण कम्मंताणि का' श्मशानकर्मान्तानि वा-३मशानगृहाणि 'संतिकम्मंताणि वा' शान्तिकर्मान्तानि या शान्तिकर्मविधानगृहाणि 'मुण्णागारकम्मंताणि वा' शून्यागारकर्मान्तानि वा शून्यागारगृहाणि विविक्तगृहरूपाणि, 'गिरिकम्मंताणि वा' गिरिकर्मान्तानि वा गिरिगृहाणि पर्वतोपरिनिर्मित गृहाणीत्यर्थः 'कंदरकम्मंताणि वा' कन्दराकर्मान्तानि वा-गुफा. गृहाणि, 'सेलोवट्ठाण कम्मंताणि वा' शैलोपस्थापनकर्मान्तानि-पाषाणमण्डपानि 'भवणगिहाणि वा भवनगृहाणि वा, तदेवंभूतानि गृहाणि श्राद्धैः कैवल्य स्वर्गेप्सुमिः क्रियन्ते तत्र 'जे कुर्शी की चटाई वगैरह बनाने का ही गृह बनवाया हो अथवा बद्धकम्मंताणि वा' बर्द्धकर्मान्त-अर्थात् चमडे का मशक चरश वगैरह बनाने का ही घर बनवाया हो 'वक्कयकम्मंताणि वा' या बल्कल कर्मान्त वल्कल छाल की चीजें बनानेका ही गृह बनवाया हो अथवा 'इंगालकम्मंताणि वा' अङ्गारकान्त अर्थात् कोलसा बनाने का ही घर बनवाया गया हो-'कट्टकम्भंताणि वा' काष्ठ कर्मान्त-काष्ठमय गृह बनवाया गया हो, अथवा 'सुसाणकम्मंताणि वा' श्मशान कर्मान्त अर्थात् श्मशान का ही घर बनवाया गया हो अथवा 'संतिकम्मंताणिया' शान्ति कर्मान्त-शांति कर्मकरने के लिये गृह बनवाया गया है अर्थात् 'सुण्णागारक म्मंताणि या' शून्यागार-कर्मान्त एकान्त स्थान का घर बनवाया हो या 'गिरिकम्मंताणि वा' गिरिकान्त-पर्वत के ऊपर बनवाया गया घर हो अथवा 'कंदरकम्मंताणि वा' गुफाओं का ही घर बनवाया गया हो या-'सेलोवट्टाणकम्म ताणि वा-शलोप्रस्थान कर्मान्त-अर्थात् पत्थरका मण्डप ही बनाया गया हो मनावे हाय अथवा 'बद्धकम्मंताणि वा' प न्ति मेट याभानु भश विगैरे मनावानु घ२ मनविस डाय अथवा 'वक्कय कम्मंताणि वा' १४ मन्ति ये है वृक्षनी छावनी परतु मनावानु ३२ मनविस डाय अथवा 'इंगाल कम्मंताणि वा' म॥२ आन्त मात् स मनावानु०४ ५२ नावेस डाय अथवा 'कटुकम्मंताणि वा' ४४७३ भान्त अटो , ४१७मय ०४ ३२ मनास डाय अथवा 'सुसाणकम्मंताणि वा' भशान ४ ५२ नावामां आवे डाय 424! 'संति कम्मंताणि वा' iति नित मर्थात शildsk ४२१॥ भाटे घर मनावेत हाय मथा 'सुण्णागारकम्भताणि वा' शून्य। ॥२ ४ान्त मति मेन्त स्थ५ माटेनु ३२ मनास सय २५था 'गिरि कम्मंताणि वा' रिन्ति अर्थात् पतनी ७५२ मनापामा मायेस १२ डाय अथ। 'कंदर कम्म ताणि वा' भनित अर्थात् समानु०४ ३२ मनावेस डाय 24241 ‘सेलोवद्वाणकम्म ताणि वा' शैवोपस्थापन मानत अर्थात् पत्थर म ५०४ मनावर राय अथवा श्री माया सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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