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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. २ सू० २१ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ३७७ अपावृणुयात्-उद्घाटयेत् 'तेणे य तस्संघिचारी' सोनश्च चौरः तत्सन्धिचारी तच्छिद्रान्वेषी 'अणुपविसेन्जा' अनुप्रविशेत-यदि अनुप्रवेशं कुर्यातहि 'तस्स भिक्खुस्स' तस्य भिक्षुकस्य' 'णो कप्पई एवं वदित्तए'-नो कल्पते एवं वक्ष्यमाणरीत्या वदितम्-तद्यथा 'अयं तेणे पविसइ वा' अयं स्तेनश्चौरः गृहं प्रविशति या 'णो वा पविसई' नो या प्रविशति, प्रविशति न वा प्रविशति इति किमपि न ब्रूयात् एवम् ‘उवल्लियइ वा णो वा उवल्लियइ' उपलीयते वा नो वा उपलीयते, उपकीनो भवति नो वा उपलीनो भवति इत्यपि न वदेत् तथा 'आवयति वा गो वा आवयति' आपतति वा नो आपतति, 'वयति वा णो वा, वयति' वदति वा मो वावदति इत्यपि न ब्रूयात्, एवं 'तेण हडं अण्णेण हडं' तेन हृतम् द्रव्यं वस्तु का, अन्येन वा केनचिद् हृतम् 'तस्स हडं अण्णस्स हडं' तस्य हृतम्, अन्यस्य वा हृतम् 'अयं तेणे' अयं स्तेनः चोरः त्याग करने के वेगसे बाधित होकर 'राओधा विआले वा' रात में या चिकाल में अर्थात् विकट समय में 'गाहावई कुलस्स दुबारबाहं अवगुणेज्जा' गृहपति गृहस्थ के घर का द्वार भाग खोल देगा, और 'तेणेय तस्संधि चारी अणुपविसेजा' उसी खोले हुवे द्वार मागके छेदसे चोर डाकू उस गृहस्थ के घर में प्रविष्ट हो जायेगा किन्तु 'तस्स भिक्खुस्स, णो कप्पइ एवं वदित्तए-वह साधु ऐसा वक्ष्यमाण रूप से नहीं बोल सकता है कि-'अयं तेणे पविसइ वा-यह चोर इस गृहति के घर में प्रवेश कर रहा है या 'णो वा पविसई' नहीं प्रवेश कररहा है अर्थात घुस गया है या नहीं घुस गया है एसा कुछ भी नहीं बोले इसी प्रकार-'उल्लियइ या' यह चोर गृहस्थ के घर में छिप गया है या 'णो वा उवलियई-नहीं छिपा है ऐसा भी नहीं बोले एवं 'आवयति वा' यह चौर आ रहा है धावा कर रहा है 'णो या आवयति'-या नहीं आ रहा है अर्थात् नहीं धावा कर रहा ऐसा भी नहीं बोले तथा-' बदति वा णो वा बदति' यह चौर चुपके से बोल रहा है या नहीं बोल रहा है ऐसा भी नहीं बोले' एवं- तेणहडं अण्णेण हर्ड' इसी प्रकार इसी स्थन। धरना ४२वा पासवा ५ तेणेय वा तस्संधिचारी अणुपविसेज्जा' मन मे भरोसा द्वाभाथी यो२ डू थे स्थन! ५२मा प्रवेशी M५ ५२ 'तस्स भिक्खुस्प्त णो कप्पइ एवं वदित्तए' ते साधु मा १६५ मा रीते ही न श अयं तेणे पविसइ वा णो या पविसई' मा यार मा पतिना घरमा प्रवेश ४२ छ भ२५ प्रवेश नथी ४२ता. मात् ५२मा प्रवेश ४ो छ ॐ नयी ४ ते ४५ ५४ या नही था 'उल्लियइ वा णो वा उबल्लियई' को प्रमाणे २५यार स्थन। घरमा संत गयो छ. अथा थी सताये ४४ ५५ यु तथा 'आवयति वा णो वा आवयति' मा यो२ मा १२ नथी भापते! अर्थात् ३२i ort संता २ह्यो छ. तथा वदति वा णो वा वदति' छानामा १४ रह्यो छे है मो छ. ५५ ४ नही. तथा 'तेण हडं अण्णेण हडं' એજ પ્રમાણે એ ચોરે ચોરીને દ્રવ્ય લીધું છે કે-કઈ બીજાએ ચાર્યું છે એમ પણ ન आ०६८ श्री आय॥२२॥ सूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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