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आचारांगसूत्रे निपीधिको या-स्वाध्ययभूमि वा 'चेहज्जा' चेतयेत्-कुर्यात् तथा सति आधाकर्मादिदोषयुक्तत्वेन संयमविराधनास्यात् किन्तु 'अह पुण एवं जाणिज्ना' अथ-यदि पुनरेवं वक्ष्यमाण रीत्या उपाश्रयं निम्नदर्शितस्वरूपं जानीयात् तथाहि 'पुरिसंतरकर्ड' पुरुषान्तरकृतम् दात पुरुषापेक्षया भिन्न पुरुषेण निर्मितं एवं 'बहिया निहडं' बहिनिहतं 'णिसिटुं' निसृष्टमसर्वस्वाम्यनुमतं 'जात्र' यावत् 'आसेवियं' आसेवितम्-उपमोगविषयी कृतम् एवंविधम् उपाश्रयम् 'पडिलेहित्ता' प्रतिलेा प्रतिलेहनं कृत्वा प्रतिलेख्य इत्यर्थः, 'पमज्जित्ता' प्रम. ज्य-प्रमार्जन विधाय 'नओ संजयामेव ततः तदनन्तरम् 'संयत एव संयमनियमपालनतत्पर. एव 'ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा' स्थान या शय्यां वा निषीधिकां वा 'चेइज्जा' चेतयेत्-कुर्यादित्यर्थः ॥सू० ७॥ के लिये भूमि ग्रहण नहीं करे क्योंकि उक्तरीति से आधाकर्मादि दोषों से युक्त होने के कारण संयम आत्मविराधना होगी, किन्तु 'अहपुण एवं जाणिज्जा' यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से उस उपाश्रय को साधु और साध्वी जानले कि यह उपाश्रय 'पुरिसंतरकडे' पुरुषान्तरकृत है अर्थात् दाता रूप गृहस्थ श्रावकने ही इस उपाश्रय को बनाया है और 'पहिया नीहडं' बहिनिहृतम्-बाहर भी व्य. वहार में लाया गया है और 'णिसिह निसृष्ट सभी स्वामी-मालिक अधिकारी से स्वीकृत किया गया है 'जाव 'आसेवियं' यावत् अतदर्थिक-केवल उसी सोधु के लिये ही नहीं बनाया गया है एवं आसेवित इस उपाश्रय का आसेवन भी किया गया है ऐसा जान ले तो 'पडिलेहित्ता पमजित्ता' प्रतिलेखन करके और प्रमार्जन करके 'तओ संजयामेव' संयत होकर ही अर्थात् संयम के नियम का पालन करने में तत्पर होकर ही ध्यान रूप कायोत्सर्ग के लिये 'ठाणं चा सेज्ज वा' स्थान ग्रहण करना चाहिये एवं शय्या-विस्तरा अर्थातू संथरा भी विछाना चाहिये तथा 'निसीहियं वा चेइज्जा' स्वाध्याय करने के लिये भूमि ग्रहण
चेइज्जा' २५६याय ४२५॥ भाटे ५५ मे भूमि अह १२वी नहीं है त५४।२। ઉપાશ્રય આધાકર્માદિ દેવાળે હેવાથી સંયમ આત્મ વિરાધના થાય છે. પરંતુ “કહ્યું पुणएवं जाणिज्जा' ले थे 30श्रय नीये उपामां आवे छे ते प्रा२ने पाम मा रेम है 'पुरिसंतरकडे' 241 3ाश्र५ ५३षान्तकृत छ अर्थात हाता शिवाय अन्य ०५तिये मनावत नथी तथा 'बहिया नीहडं' १९१२ व्यवहारमा ५६] सवाये डाय तथा 'णिसिटुं' मा स्वाभीमासे मनुमत ४२ डाय 'जाव आसेविय' यावत् ५५ ६ मे साधुने उद्देशाने मनापामा मावत नाय तो तेव। पाश्रयने 'पडिलेहित्ता' प्रतिमन रीन तथा 'पम ज्जित्ता' प्रभान रीने तओ संजयामेव ठाणं वा सेज्ज वा' सयत ने अर्थात सयमना નિયમોના પાલન પૂર્વક જ ધ્યાનરૂપ કાર્યોત્સર્ગ માટે સ્થાન ગ્રહણ કરવું તેમજ શમ્યા અર્થાત્
या। ५४ पाय२५॥ २५ान अ५ ४२६ भने 'निसीहियं वा, येइज्जा' २५याय भाट ५y
श्री माया
सूत्र : ४